Pratibha Bhadoria   (प्रतिभा)
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Joined 27 May 2021


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9 HOURS AGO

घर से निकले तो ख्वाब घर के आए
कितने बेताब थे पांव दर से निकलने को

उड़ती है फिर आ बैठती है मन की चिड़िया
जहन ने रोके रखा है दिल पिघलने को

जिंदगी तू थकी न तरसा तरसा के
कि अब दिल ए रेजा है बिखरने को

बहुत हो गया समझदारी का दिखावा
चाहता है दिल छोटे बच्चे सा बिफरने को

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14 HOURS AGO

दर्द के एहसास भारी होते है
थोड़ा हल्का कर दो कहकर
गले में अटकते आंसू,बहने दो
कुछ न मिलेगा गम सहकर

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YESTERDAY AT 13:12

जिंदगी एक पहेली है
खेले आंख मिचौली है
जब देखो हैरान करे
करती अठखेली है
खुशी में लगे हैं मजमे
दर्द में हरदम अकेली है
जिंदगी ....

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YESTERDAY AT 13:05

इस दृश्य को को देखने के लिए
बरसात का इंतजार करना पड़ता है
वर्ना हमारी यमुना मैया सूखी ही रहतीं हैं
मैं तो कहती हुं थोड़े दिन के लिए
अवैध खनन को वैध कर दे तो
सारी silt साफ हो जाएगी🫣

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YESTERDAY AT 8:01

जीवन नई आशाओं का सफर है
हर दिन नई दिशाओं का सफर है
सूरज की पहली किरण से शुरू,
रात के अंधेरे तक का सफर है
क्या आसान क्या कठिन डगर है
जैसे भी हो आखिर करना सफर है
हर किसी की दिशा अलग, दशा अलग
एक ही कारवां में सबका अपना अपना सफर है

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YESTERDAY AT 0:10

दिन के शोर शराबे से
रात का सन्नाटा अच्छा लगता है
सुबह से आंखे चुंधियाई हैं
रात का अंधियारा अच्छा लगता है
बीत गया जो, वो लौट न आयेगा
फिरभी करना याद अच्छा लगता है
सुबह के अखवार की सुर्खियां
भूलकर सो जाना अच्छा लगता है
पूरे दिन में थक कर खर्च हुआ है
तकिया विस्तर सा खजाना अच्छा लगता है
दिन भर सूरज के एहतराम में झुके हैं
रात तारों का टिमटिमाना अच्छा लगता है

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27 APR AT 11:12

’सभ्यता और इंसान’


अनुशीर्षक में पढ़े👇🏻

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27 APR AT 10:04

उसे ख्वाब में देखना ,ख्वाब ही रह गया
जमाने बदले, न ख्वाब आए न नींद आई

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27 APR AT 8:23

इश्क का गुलाब
इश्क के कांटे
महफिल के रक्स
तन्हाई ने बांटें
शोर खामोश हुआ
तो गूंजें सन्नाटे
वस्ल के फूल
जुदाई के कांटे

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26 APR AT 22:08

अंदर शोर है बाहर खामोशी छाई है
धूप इतनी की छोड़ चली परछाई है
थक चले थे पांव सफर करते करते
कब तलक परछाई का पीछा करते

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