Pratibha Agrahari   (प्रतिभा_अग्रहरि♌)
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Joined 26 December 2016


Joined 26 December 2016
17 JUL 2019 AT 10:05

मैले कपड़े
फटे चमड़ियों
जोंक के खून चूसे निशान के साथ
मुठ्ठी में धान के छोटे केश जकड़े किसान
फसल नहीं
अपनी
अर्थव्यवस्था उगाने जा रहे

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26 JUL 2021 AT 23:43

खर्चे
वे जल्लाद रहे
जिन्होंने
तनख़्वाह को
बोटी बोटी काटा है

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25 JUL 2021 AT 12:09

सबसे जरूरी खर्चे हथेलियों पर लिखे गए
सबसे जरूरी बातें कभी कही ही नहीं गयी
सबसे गूढ़ रहस्य किसी डायरी में नहीं दर्ज हुए
मारे डर के जला दिए गए प्रेमपत्र
जाने वाले को लौटने का निमंत्रण देने के बजाय
कह दिया अलविदा
हम सबने जल्दीबाज़ी में
सारे काम अधूरे किये
एकदूसरे से बिछड़ते वक़्त
हम तकते रहे बस भीड़ लोग चौराहे
जबकि हम हथेलियां थाम गले भी लग सकते थे

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24 JUL 2021 AT 13:39

किताबें मेरा पहला प्रेम रहीं
ये जानते हुए भी
उसने डायरियाँ भेंट की
उसके मुताबिक
किताबें
किसी और का संवाद है
खुद से
जबकि
खुद से किये गए संवाद
किताबों में अंकित भावों
से ज़्यादा जरूरी हैं

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24 JUL 2021 AT 0:48


लोग हमारे अपने हो सकते हैं
मगर
हमारी ज़ुबान
हमारी भाषा
हमारा लहज़ा नहीं हो सकते
हमें अपने हिस्से की पीड़ा खुद कहनी होगी
हमें अपने हिस्से की बात खुद बतानी होगी
हमें अपने फैसले ख़ुद लेने होंगे
दूसरों के लिए फैसले पर
अपनी ज़िंदगी बिताने वाले
सब पछतायेंगे
आज नहीं तो कल

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24 JUL 2021 AT 0:43

मैं कविता कहती
मेरी कविताओं से जान जाते कितना दुःख है
तुम कविता कहते
तुम्हारे चेहरे से जान जाते कितना दुःख है

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26 JUN 2021 AT 15:44

मानव जीवन
ईश्वर के संदूक से निकली
उसकी वे सहेजी चीजें हैं
जिनपर सीलन सुखाने को
वो उसे धूप दिखाता है
और मृत्यु
धूप दिखाने के बाद सहेजने की क्रिया
हम इंसानों की जिंदगी
सिर्फ उतने दिनों की ही है
जितनी ईश्वर के आंगन में धूप

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25 JUN 2021 AT 1:24

जीवन एक प्रयोगशाला
और नियति प्रयोगकर्ता
जिसके परिणाम हमें भुगतने ही हैं
चाहे अनचाहे
मगर
जीवन में परिणामों पर इतना भी ढीठ नहीं होना
अक्सर निष्कर्ष
परिणामों से विपरीत हो जाते हैं

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25 JUN 2021 AT 1:08

मैं इतनी सरल रही
कि मंजन करते वक़्त डूबती चींटियों को जीवन का सहारा दिया
मम्मी से छुपकर चूहेदानी खोल भगा दिए चूहे
घंटो एक्वेरियम की मछलियों से पूछा उनका हालचाल
छोटी सी बात पर बहुत ज्यादा सोचा
हँसने के एक बहाने पर कई दिन तक हँसी
मैं कविताओं के खो जाने पर बेतहाशा रोयी
तुममें तो मेरा समूचा प्रेम समाहित है
तुम्हारे बाद
कोई थाह भी न पाएगा
इस सरलता के साथ क्या वीभत्सता हुई

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24 JUN 2021 AT 0:19

चिठ्ठियाँ
कभी भी पुरातत्वविदों के हिस्से में
नहीं आएंगी

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