Prathamesh Malaikar   (PM)
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Engineer by qualification, banker by reluctance, writer by choice.
Joined 6 May 2020


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29 APR AT 23:38

जब रूबरू हुए हम उस खुशबू से
जो हममें ही समाई थी कही
रोशन हो गई फिजाएं इस कदर के
जो मंजिले ढूंढने निकले थे
वो अपना मुकद्दर लिखने लग गए

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27 APR AT 1:38

कई रोमानी हाथों से गुजरता था
किसी कमीज की जेब में
या किसी कोमल हथेलियों में
अपना घर बनाता था
बेशकीमती मुस्कानों और अनगिनत अश्कों का
गवाह बन जाता था
पर आज कल वो मुरझाया हुआ
किताबों में मिला करता हैं
किताबों की कहानियों के बीच
अपनी एक अलग कहानी बयां करता हैं

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25 APR AT 0:04

ख़्वाबों की गिरफ्त से आजाद होकर
हम मंजिल की तलाश में
नए रास्ते खोजने निकल गए
घर अकेला रह गया

निकले थे कुछ वादों के संग
खुशहाली के साथ लौटेंगे एक दिन
संसार के मायाजाल में फंस गए
घर अकेला रह गया

जो साथ खड़ा हुआ वो दोस्त
जिनसे खुशियां और गम बांटे
वो नया परिवार बन गया
घर अकेला रह गया

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17 APR AT 22:53

Hands that can nurture and care
And not control them for pride
Hands that can appreciate and admire
And not showcase them as a souvenir
Hands that can set them free
And not shackle them for greed

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12 APR AT 23:49

The act of passing through
A process that is often romanticised
As something glorious and benevolent
Oblivious of the fact that
We do not know where our journey began
And where it's going to end
We are merely a species in transit.

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11 MAR AT 23:20

तुम वो आरज़ू हो जो कभी कामिल ना हो
वर्क पर कैसे उतारू तुम्हें
तुम वो दरिया हो जिसका कोई साहिल ना हो

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9 MAR AT 1:31

हसरतों के गुल खिला करते हैं
बस यादें ही तो बची हैं जिनमें
हम और तुम आज भी मिला करते हैं

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6 MAR AT 23:48

रूखे रूखे से हम
रूठी रूठी सी जिंदगानी
रूठे रूठे से हम
टूटे टूटे से ख्वाब
बिखरे बिखरे से हम
बुझी बुझी सी रोशनी
खोए खोए से हम
गहरी गहरी सी लहरें
डूबे डूबे से हम
सूनी सूनी सी रातें
उलझे उलझे से हम

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26 FEB AT 22:49

शब्दोें से जुमलों तक
जुमलों से परिच्छेदों तक
परिच्छेदों से अध्यायों तक
अध्यायों से कहानी तक
और कहानी से तुम तक
का ये हसीन सफर
लोग इस कहानी को
जिंदगी भी कहते हैं

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25 FEB AT 0:31

खो जाने का डर महसूस होता हैं
अनगिनत लोगों के बीच
तन्हाई का एहसास होता हैं
शायद हम भूल जाते हैं
हम महज भीड़ का एक हिस्सा नहीं
हम ही भीड़ हैं

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