वो कहते हैं, "वो सब देख रहा, वो सब जानता है।"
फ़िर सब जानते हुए भी वो मूक क्यों बैठा है?
वो कहते हैं, "वो सबका करता-धर्ता, सबका मालिक है।"
तो वो यूं हाथ-पर-हाथ धरे बैठा क्यों है? कुछ करता क्यों नहीं?
वो कहते हैं, "वो सबकी झोली भरता, सबकी मुराद पूरी करता है।"
तो क्या उसे मेरा नाम, मेरा ठिकाना पता नहीं?
ला दे मुझे उसका पता,
मैं आपे होकर आऊंगा।
"बड़ी मिल्कियत है उसकी", सुना है
उसकी जागीरी भी देख आऊंगा।
देखूं तो मैं भी जो कहते हैं सब
वो सच है भी या नहीं
देखूं तो कहां रहता ये रब?
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मिरी ख़ामोशी का एक टुकड़ा मेरे सामने बैठ चीख़ रहा है
और मैं बस तमाशबीन बन उसे देख रहा हूँ।
वो कुछ कह रहा शायद,
शायद मैं सुन नहीं पा रहा।
मैं कुछ बोलूं, वो सुनना नहीं चाह रहा,
इस द्वंद में
मस्तिष्क कुछ कह रहा, मन कहीं और जा रहा।-
वो समझदार तो नहीं, इतना जान पड़ता है,
काशी का है मग़र काफ़िर जान पड़ता है।-
वो खिड़की कहां गयी? बन्द हो गयी क्या?
यकीं मानों यकीन नहीं होता।
दीवार क्या उठी, हवा बन्द हो गयी क्या?
यकीं मानों यकीन नहीं होता।
घोंसला कहां गया? चुरुंगुन बड़े हो गयें क्या?
यकीं मानों यकीन नहीं होता।
वो जो कल तक मेरे जूते में ना आता था, आज ज़बान लड़ा रहा है
यकीं मानों यकीन नहीं होता।
द्रौपदी बिलखती रही और कृष्ण आये नहीं इस बार,
यकीं मानों यकीन नहीं होता।
"ज़माना बड़ा ख़राब है", ये कह गुप्ता जी ने पान वहीं थूक दिया,
यकीं मानों यकीन नहीं होता।
डूबा वो जहाज भी जो डूब नहीं सकता था,
यकीं मानों यकीन नहीं होता।-
ये शहर अब पहले जैसा कहां हैं?
ला इलाही अब उनका आना-जाना कहां है?
गलियां अब शिथिल पड़ी पूछ रहीं,
"और बताओ वत्स 'अहान' कहां है?"
कहां-कहां जाऊँ भागकर उनसे?
ये उनके शहर में उनकी नामौजूदगी कहां है?
गौर से देखो कभी यहां रहा करते थे वो,
अब इन दरों-दीवार में वो खुशबू कहां है?
शिव भी कनावर ओढ़े आएं ये देखने,
"आख़िर हमारा ख़ुदा रहता कहां है?"-
लड़ रहे हो तो ज़रा अच्छे से लड़ो,
यो क्या के बस बातों से लड़ो।
ज़रा ज़ख़्म दो उनके जिस्म पर,
अमा यार! अब तो तलवारों से लड़ो।
ये क्या बचपना है के खिलौनों के लिए लड़ रहे?
भई! लड़ना है तो जायदाद-पैसों के लिए लड़ो।
ज़रा बाल पकड़ो, ज़रा ज़ोर से चमाट लगाओ,
घसीटकर कर मारो, यो करो के लातों-घूसों से लड़ो।
रसीदकर दो एक तबियत से,
जो मिज़ाज बिगड़े, अदालतों में कागज़ों पर लड़ो।
थक गए हो तो बैठो थोड़ी देर,
आहिस्ता-आहिस्ता, आराम से लड़ो।
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कोई खाली करवाओ अब ये दिल का कमरा उनकी यादों से,
खामखाँ हर महीने का किराया बढ़ता जा रहा है।-
मास्क लगाओ, सैनिटाइजर लगाओ,
कोरोना चल रहा, ऐतियातन दूर-दूर से लड़ो।
छतों पर आओ,थाली पीटो, ताली बजाओ, दीए जाओ,
गली-मौहल्ले में रैली निकाल लोगों में जागरूकता लाओ,
कुछ ऐसे भी तुम कोरोना से लड़ो।-
शांति थी आज बहुत कुन्बे में,
हमनें हिन्दू-मुसलमां कर दंगा करवा दिया।-
मेरी कोख में एक राज़ दफ़न है,
रूह में पहना ये कैसा कफ़न है?
सिल रहा ज़िंदगी की तार से कुछ सांसो को,
प्यास गहरी है, तलाश रहा हूँ कुछ प्यासों को।
एक तज्जसूस है की बांटनी ये खानी है,
दो पल मुलाक़ात फ़िर उम्रभर रवानी है।
बटवारा तो हो गया, हर ओर बहता अब लाल रंग का पानी है,
जहां काम ना आयी तलवार, घायल करने को ज़ुबानों-सी ना कोई सानी है।
बड़ा गुमाँ हैं रौशनी को रौशनाई का,
अब उनसे जो मिले, क़ीमत तो चुकानी है।
मैं पापी हूँ, पाप करने की ठानी है,
आ बैठ तुझे मेरी कुछ गिरी हुई हरकतें बतानी हैं।
ये कैसा रिश्ता है जो बस जिस्मानी है?
सुख कैसे गया वो तालाब जहां बहता इश्क़ रूहानी है?
अजीब ही उनकी भी कारस्तानी है,
वो मिलने तो आ रहें मग़र जाने की ख़बर सुनानी है।
उन्हें इल्म है या इश्क़ के आगाज़ से वो अनजानी है?
भाग चाहे जहां जी चाहे, मौत तो एक रोज़ आनी है।
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