अमाँ छोड़ो कहीं दूर निकल जाओ तुम,
तुम्हारे काम की अब बस्ती में कोई चीज नहीं।-
अपनी रंगत का एहसास भी तुम्हें कराना पड़ता है,
अपनी अहमियत को आए रोज़ ही आज़माना पड़ता है,
पड़ता है तुम्हें आज भी बताना की क्या हो तुम उसके लिए,
तुम्हें सब कुछ छोड़ कर पहले तुम्हें ही जताना पड़ता है,
ये सब तो ठीक है पर ये आखिर क्या बात हुई,
तुम्हें हर बार ही सब कुछ पहले से सजाना पड़ता है!
कह क्यूँ नहीं देते अब थक गया हुँ इन सब से,
जैसी रखते हो ख्वाहिश वो ही खुल कर बता क्यूँ नहीं देते?-
खंज़र सा चुभता हुँ मगर दिल तक नहीं जाता,
दिल नहीं तोड़ता मैं! क्योंकि दिल तक नहीं जाता।-
दाग़ सा हो जाता हुँ मैं एक वक़्त बाद,
मुझसे मेरा असल ज्यादा देर तक संभाला नहीं जाता।-
ढाई आख़र का ये शब्द 'प्रेम'..
ना जाने कौन कौन से पहाड़े याद दिला देता है। 🙊-
खींच ले अब्र से कोई रंगीन परिंदा ऐ दोस्त,
इस दहर में तन्हा लोगों पर मर्ज़ चढ़ते हैं।-
चाहत है! चाहत में दुस्वारियां होती हैं,
मोहब्बत बेख्याली लोगों के बस की बात थोड़ी है।-