अगर मैं! हारा तो जीतेगा कौन?
तुम्हारे शोर से ज्यादा बेहतर है मेरा मौन,
आज वक़्त खराब है कल और भी होगा,
कहानी ठीक-ठाक ही चली तो देखकर सीखेगा कौन!-
मगर तुम कोई बाज़ी नहीं हो,
तुम तो जलपरी हो,
इसलिए मुझे हासिल नहीं हो।-
ये ना सोचा था मगर हो रहा है ना,
साथ जो था लम्हा तन्हाइयों में खो रहा है ना,
हसरतों में तुम्हारा माथा तो रोज़ चूमता हूँ मैं,
होंठ जो कब से प्यासे हैं साथ इनके गलत हो रहा है ना,
ख्वाहिश थी एक रात तुम्हें बाहों में कैद रखूँ,
ना जाने क्यों मगर ना चाहा हुआ ही सब कुछ हो रहा है ना।
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हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं,
एक दूसरे को वक़्त नहीं दे पाते हैं।-
नश्वर इस शरीर में आत्मा सी तुम हो,
मैं कुछ भी नहीं हूँ जो हो सिर्फ तुम हो।-
ठेहराव नहीं जानती,
ये वक़्त या हालात
का ख्याल भी नहीं करती,
क्योंकि इनमें छल
बिल्कुल नहीं होता,
ना ही माँग इन्हें बस
अपनी गति से चलना है ,
अनवरत जब तक साँसे
नहीं थम जाती।-
खुद के जैसी एक तस्वीर
बनानी थी मुझे,
ढूँढने पर मेरे अन्दर से सब
रंग तुम्हारे निकले।-
रह तो जाना था तेरी उँगलियों से लग कर,
पर इन हाथों का शायद खालीपन ही भाग्य है,
तुमने खोया है एक ज़िन्दगी से हारा शख़्स,
मैंने ज़रिया-ए-सुकून खोया है ये मेरा दुर्भाग्य है।
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सिमटा जिस एक रात,
बस उस एक रात के बाद
से जल्दी सो जाता हूँ, मैं!
अब कोई खैरियत पूछता है
तो डर जाता हूँ, मैं।-