Prateek Saini   (Prateek_कलंदर)
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#कलंदर
Writing...is my antidote
Banker by profession
Writer by soul
Joined 31 May 2018


#कलंदर
Writing...is my antidote
Banker by profession
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23 FEB AT 21:22

घर की काली दीवारें ही देखी हैं उसने
वो जिसे कागज़ भी काला दिखता है
झरोखे से झांकती है चुपके सी रोशनी
लगता है मानो अपना वजूद तलाश रही है
कुछ दिन ही सही तंग गलियों में जगह बन जायेगी
आ रहा है चुनाव अब सरकारी गाड़ी जरूर आएगी

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23 FEB AT 20:14

खो देने से बेहतर था के सब भुला ही देते
पास था जो दोस्त उसे कुछ बता ही देते
इतना लंबा तो था सफर कुछ कहा क्यों नहीं
चलते चलते ही सही घाव दिखा ही देते

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21 JAN AT 18:52

मेरे देश की तरक्की में औरत का इतना ही योगदान है
सदियों साथ रही सीता पर आज सबको राम का ही इंतजार है

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17 JAN AT 19:40

ज़िंदा हैं वो लोग जिनमे हालात बदलने की ताकत है
मुर्दाओं के राज में हमने खामोशी ही देखी है

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7 JAN AT 19:43

कहां भूले हैं हम वो शाम की मुलाकातें
वो मोहल्ले की मुंडेरे और अंधेर रातें
हर शाम बिजली जाने का इंतजार करते थे
अंधेरे का जशन भी बेहिसाब करते थे
आज चार दीवारों से झांका तो सुनसान रह गया
वो बचपन का अंधेरा बस यादों में रह गया

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29 AUG 2023 AT 21:56

घर की रंगीन दीवारों से वो दाग मिट जाते हैं
यादों के हजारों पोटले जैसे धूल से सन जाते हैं
किसी रोज़ जहन में जरूर आते हैं वो दिन
कभी मुंह फुलाते थे जिनपे वो दिन याद आते हैं
मीठे की लड़ाई में नमकीन सी सुलह कराते थे
उन दिनों घर के बड़े कुछ यूंही काम आते थे
झट से निकलती है जिंदगी के सब धुंधला जाते हैं
एक रोज़ उन लड़ाकुओं के घर अलग अलग हो जाते हैं

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20 JUL 2023 AT 20:05

कौन है जीवित यहां जिसपे आस लगाएंगे
मरती इंसानियत को क्या संजीवनी पिलआयेंगे
खुली आंखों से अंधों जैसी खड़ी है जो
बताओ इस बेहरी सरकार को क्या सुनायेंगे
चुपचाप इंतजार कर रहे हैं अपनी बारी का
यूं ही धरना देते देते एक दिन मर जायेंगे
उठा ले आज हथियार ऐ द्रौपदी
अब बचाने कान्हा नहीं आयेंगे

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18 JUN 2023 AT 0:07

पुरानी जंग के फ़ौजी आज भी खड़े हैं
जीते हैं उसूल जिनपे आज भी अड़े हैं
चुप हैं बस दिन भर घर को घूरे जाते हैं
गुस्से की पुरानी छवि लिए मंद मंद मुस्कुराते हैं
बहुत कुछ कमाया अब जेबें हल्की हो चली हैं
हां हमपे यूंही चुपचाप सब उड़ा देते हैं
जिंदगी बना कर घर की जेबें दिखा देते हैं
कुछ यूंही लम्हों को दोहरा लेने को दिन मिल जाए
एक दिन हो ऐसा के पापा के बचपन से मिल पाए

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29 MAR 2023 AT 21:42

दुनिया के तरीके बेशक कितने ही क्यूं ना बदल जाए
पर सूरज इनकी चाय से पहले शायद ही निकल पायेगा

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21 MAR 2023 AT 23:29

मुक्कमल शहरों में जज़्बात गुमशुदा से रहते हैं
हुनर को जगह गांव के चौपालों सी चाहिए
यूंही सूखी रह जाएगी कलम तेरी इस दिवारी में
कल पहले पहर वो शहर वाली गाड़ी पकड़ ले

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