उबलते रक्त की हर बूंद से बुनियाद हिलाने को
वो आ रहे हैं तेरे घर अपना धर्म बताने को-
लो यारों फिर एक साल गुज़र गया
गिरते संभलते आख़िर इस पड़ाव पर हैं
के हर पीछे का दिन एक याद है
चुनौतियाँ तो यूंही अति रहेंगी
हां होगा कि कभी हौंसले भी साथ छोड़ देंगे
पर हम सब फिर खड़े होंगे
हम फिर मिलेंगे उन तारीखों पर
आने वाला साल फिर एक किताब बनेगा
जिसके पन्ने आप चाहे ना चाहे पलटे जायेंगे
बस कोशिश करे कि वो बिना पढ़े ना रह जाए-
मुसाफ़िर हूँ मैं भी यारों
मंज़िल तक तो जाना ही था
बस सफर कुछ यूं याद रहेगा हमें
के आखरी सफ़र में पूरा देश साथ था
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घर की काली दीवारें ही देखी हैं उसने
वो जिसे कागज़ भी काला दिखता है
झरोखे से झांकती है चुपके सी रोशनी
लगता है मानो अपना वजूद तलाश रही है
कुछ दिन ही सही तंग गलियों में जगह बन जायेगी
आ रहा है चुनाव अब सरकारी गाड़ी जरूर आएगी
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खो देने से बेहतर था के सब भुला ही देते
पास था जो दोस्त उसे कुछ बता ही देते
इतना लंबा तो था सफर कुछ कहा क्यों नहीं
चलते चलते ही सही घाव दिखा ही देते
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मेरे देश की तरक्की में औरत का इतना ही योगदान है
सदियों साथ रही सीता पर आज सबको राम का ही इंतजार है-
ज़िंदा हैं वो लोग जिनमे हालात बदलने की ताकत है
मुर्दाओं के राज में हमने खामोशी ही देखी है-
कहां भूले हैं हम वो शाम की मुलाकातें
वो मोहल्ले की मुंडेरे और अंधेर रातें
हर शाम बिजली जाने का इंतजार करते थे
अंधेरे का जशन भी बेहिसाब करते थे
आज चार दीवारों से झांका तो सुनसान रह गया
वो बचपन का अंधेरा बस यादों में रह गया
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घर की रंगीन दीवारों से वो दाग मिट जाते हैं
यादों के हजारों पोटले जैसे धूल से सन जाते हैं
किसी रोज़ जहन में जरूर आते हैं वो दिन
कभी मुंह फुलाते थे जिनपे वो दिन याद आते हैं
मीठे की लड़ाई में नमकीन सी सुलह कराते थे
उन दिनों घर के बड़े कुछ यूंही काम आते थे
झट से निकलती है जिंदगी के सब धुंधला जाते हैं
एक रोज़ उन लड़ाकुओं के घर अलग अलग हो जाते हैं
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कौन है जीवित यहां जिसपे आस लगाएंगे
मरती इंसानियत को क्या संजीवनी पिलआयेंगे
खुली आंखों से अंधों जैसी खड़ी है जो
बताओ इस बेहरी सरकार को क्या सुनायेंगे
चुपचाप इंतजार कर रहे हैं अपनी बारी का
यूं ही धरना देते देते एक दिन मर जायेंगे
उठा ले आज हथियार ऐ द्रौपदी
अब बचाने कान्हा नहीं आयेंगे
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