घर की रंगीन दीवारों से वो दाग मिट जाते हैं
यादों के हजारों पोटले जैसे धूल से सन जाते हैं
किसी रोज़ जहन में जरूर आते हैं वो दिन
कभी मुंह फुलाते थे जिनपे वो दिन याद आते हैं
मीठे की लड़ाई में नमकीन सी सुलह कराते थे
उन दिनों घर के बड़े कुछ यूंही काम आते थे
झट से निकलती है जिंदगी के सब धुंधला जाते हैं
एक रोज़ उन लड़ाकुओं के घर अलग अलग हो जाते हैं
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