रात पर एक°छोटी सी कहानी।
सुनोगे क्या°मेरी जुबानी।।
जिस चाँद पर तुम°इतरा रहे हो।
उसकी भी ढलेगी°जवानी।।
एक रात का ये°जुमला नहीं है।
सदियों से चल रही°ये कहानी।।-
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जो कुछ°मिला।
वो°कम न था।।
तुम्हारे लिए°जो था।
सिर्फ प्रेम था°कोई गम न था।।
जो तुमने°मुझे दिया।
जख्मों पर°लगाने के लिए।।
वो सिर्फ°नमक था।
मरहम°न था।।
और फिर मैं°रूखसत हुआ।
जिंदगी से°तुम्हारी।।
वो°खुद्दारी थी मेरी।
अहम°न था।।-
इतनी तेज़°धूप में।
वो अनगिनत तारे°दिखेंगे क्या।।
चारों तरफ°खुशियों के शोर में।
मेरे दुःख°दिखेंगे क्या।।
घूमने तो°पूरी आबादी जाती है।
कश्मीर में हिन्दू°यूँ ही मरेंगे क्या।।
और तुमने तो°मुँह मोड़ लिया कब ही।
पर ये भी°बता देती।
मेरे ज़ज्बात अब°करेंगे क्या।।-
ये°आँखें।
क्या-क्या°दिखाती है।।
काली°रातों में।
सुनहरे°सपने सजाती है।।
दिल°हो जाता है उदास।
तब°आँसू की नदियाँ बहाती है।।
और जो लफ़्ज°कह नहीं पाते।
वो सब°ईशारों में कह जाती है।।-
उलझनों में°उलझी जिंदगी।
सुलझाने पर भी°नहीं सुलझ रही।।
हर तरफ°आग-सी कठिनाईंयाँ।
बुझाने पर भी°नहीं बुझ रहीं।।-
मैं जब°अधूरा था।
पूरा करने°कोई ना आया।।
आज कतारें लगी हैं°मुझ पूर्ण को परिपूर्ण करने।।-
।।लड़के।।
लड़के°नहीं बता पाते।
अपनी परेशानी°किसी को।।
वो बैठे रहते है°घंटो तक गुमसुम।
बेवजह मोबाइल में°ताकते हुए।।
।।या फिर मिलेंगे।।
किसी टपरी पर।
हाथ में चाय और सिगरेट लिए।।-
।।माँ।।
इतने साल हुए°कमाते हुए।
पर माँ ने°कभी ना पूछनी चाही मेरी कमाई।।
वो बस°जानना चाहती है तो।
नौकरी पर मेरे°दुख-दर्द-तकलीफें।
और मैं°कितना घंटे काम करता हूँ।।-
आसमां में°जो जड़े है इनमें।
एक सितारा°मेरा भी था।
निकला था°जब समन्दर में।
एक किनारा°मेरा भी था।।
यूँ ही नहीं°शुरू हुई ये कहानी।
एक ईशारा°मेरा भी था।।
।।और।।
जो भी यादें थी°उन सब में।
एक पुलिन्दा°मेरा भी था।।-
जिन्दगी के°इस मेले में।
पड़ा हूँ°इक झमेले में।।
मदद के लिए°कोई हाथ नहीं।
रहता हूँ बस°अकेले में।।
।।अँधेरों में°खुद ही चलना है।।
भीड़ साथ रहती है°बस।
उजालों वाले°सवेरे में।।-