माँ , मैं जिस दिन आस्मां का तारा बनगया
( Entire Poetry in the Post )-
काश बचपन में स्कूल में तुमसे प्यार किया होता तो सोचो सब कितना प्यारा होता
मैं क्लास में लास्ट बेंच पर बैठता
और तुम मेरे आगे वाले सीट पर |
जम तुम्हारे साथ शरारत करना चाहता, तो चुपके से तुम्हारे बालो में लगा वो हेयर बैंड खींच लेता .
जब तुम्हे कुछ कहना चाहता तो
धीरे से तुम्हारे कानो के करीब आकर दबी आवाज़ में सब फुस फूसा देता |
जम तुमसे लड़ने का मन होता तो अपनी पेंसिल की घिसी नौक तुम्हारी पीठ को चुभोता |
जम तुम पर बेइंतेहा प्यार आता तो चुपके से ,तुम्हारे बेंच की साथ वाली खाली सीट पर आकर सीट के नीचे से तुम्हारा हाथ थाम लेता .
अगर मन होता अपने मन के अल्फ़ाज़ कहने का , तो हिंदी की कॉपी से कागज़ की पर्ची निकालकर कर , तुम्हारा और अपना नाम उस पर एक प्यारे से दिल के साथ लिखकर देता .
काश तुम्हे बचपन में मैंने प्यार किता होता |
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Sochta hoon koi kitab likhoon
Kitab me panne chaar likhoon
Par jab bhi likhne ko kalam tayar karoon
Sochun Gum likhoon ya khushion ki bochar likhoon
Sochta hoon koi kitab likhoon
Kya kisi kay khil khilate chehre ki hasi likhoon
Ya kisi ki ankhon ka gum likhoon
Akhir kis baat par vo kitaab likhoon
Uljhe rishton kay bayan likhoon
Ya nai khushion ki koi baat likhoon
Sochta hoon koi kitaab likhoon-
ज़िन्दगी , हाँ ज़िन्दगी , कभी सोचा आखिर ज़िन्दगी क्या है |
ये ज़िन्दगी कैसी है क्यों हैं , किस्से है , किनके लिए है |
क्या ये युहीं घड़ी के लम्हो से जुड़ा इक पहर है , या फिर नसीब के वो पल जो हम अनेक लम्हो में बिता देते हैं !
क्या ये माँ की गोद में खेलता नन्हा बचपन है |
या फिर उस मेहबूब की आँखों में छुपा गहरा प्यार ||
या फिर बूढ़ापे में छूटती हुई दुनिया का एहसास है |
आखिर कार क्या है ये ज़िन्दगी ||
लेकिन कभी रूह की नज़रों से देखो तो पता चलेगा ये ज़िन्दगी क्या है |
ये ज़िन्दगी पर्वतों के पीछे से उगते हुए सूरज की रौशनी है |
ये ज़िन्दगी अमावस के अँधेरे को मिटाते हुए चाँद की शीतलता है ||
ये ज़िन्दगी पेड़ो की टहनी पे सुरीली कोयल का मधुर संगीत सा है |
ये ज़िन्दगी समुद्र के किनारे पर शांत होती लहरो सी चंचलता है |
ये ज़िन्दगी ऊँचे शिखरों पैर जमी सफ़ेद बर्फ की विशुद्धता है
आखिर कार बहुत खूब सूरत है ज़िन्दगी ||
पर क्या कभी इस ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी उस नन्ही माँ के आँचल में खिलखिलाती ज़िन्दगी को महसूस किया है ||
क्या कभी बारिश के मौसम में सड़को पर पानी में छपकते हुई उस नन्ही ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी उस उस माँ के हाथ के खाने में छुपे उस मुह के स्वाद जैसी ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी बाबा की धुप और बारिश में दौड़ती हुई उस ज़िन्दगी का एहसास किया है||
क्या कभी किसी प्यार करने वाली की अश्को में छुपी उस ज़िन्दगी पे ऐतबार किया है |
क्या कभी उस ढलती हुई उम्र में एक दूजे का हाथ थाम कर चलती हुई ज़िन्दगी का एहसास किया है ||
पर ये ज़िन्दगी थम क्यों जाती है |-
मैं दोस्त बनुं कर्ण सा
और दोस्ती कृष्ण सी निभाउंगा
जो बने मित्र कोई दुर्योधन सा
उसे धर्म सुदामा का बतलाऊंगा-
हम दो हमारे दो : बाकि ना हो उसके लिए डुरेक्स यूज़ करो
नौकरी हित में जारी : योगी सरकार-
अधूरे तो भगवान भी थे |
राधा बिन कृष्ण
और
सिया बिन राम भी रहे थे |
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चलो मान लिया हम बुरे हैं
जब बुरा वक़्त आएगा तो देखना हम ही याद आएंगे-
दान कर्म की कहानी कर्ण मेरा नाम था
योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ मेरा बाण था |
बस एक ही थी गलती मेरी - मूक मैं बना रहा
जब राजसभा के बीच पांचाली तेरा दामन था लुट रहा |
बस
इस एक कुकर्म के आगे सब दान मेरे झुक गए
ऐ नारी तेरे मान के आगे प्राण मेरे छोटे पड़ गए |-
अगर हो उनकी कोई मीटिंग तो बच्चों की सिटींग
मैं भी कर सकता हूँ
क्यूंकि :Men Will be Men-