पलकों के नीचे, मुद्दतों से हमारा, इक आशियाना रहा,
अधरों पे उनके, कोई खूबसूरत, जैसे तराना रहा |
अदायें जो सारी, यूँ बाँधे रखी हो, वाकिफ़ है सारा जहाँ,
ज़ुल्फ़ें झटक के, बदल दो ये मौसम, क्या आज़माना रहा?
होली का रंग है, वो ईदी का चन्दा, माघ की वो है बहार,
दिवाली को रुख़ से, जगमग शहर था, क्या शम्मे जलाना रहा?
अनूठी वो जंग थी, निहत्थे खड़े हम, उधर दो नैन कटार,
नैना सवारी, को ले उड़ चले, अब क्या लड़ना-लड़ाना रहा?
शोख़ अदाओं, की दीवानी ये कुदरत, छिप कर करे आशिक़ी,
हवायें जो गर्दन, छू कर के निकली, झुमका बहाना रहा |
दुनिया के कानों, में पड़ा ये तराना, माना न कोई यहाँ,
आठ अजूबों के, दुनिया में चर्चे, नवाँ फ़साना रहा |
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