सामने खड़ी है, मौत और मोहब्बत,
दोनों बाहें फैला कर इशारा कर रही है।
कसम खाई थी एक पुरानी,
आज वक्त ने फिर से एहसास दिलाई है।
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दर्द इतना समेटे बैठे हैं कि
पूरा तूफान चल रहा है सीने में।
ऐसे हालातों में संभाला हूं ख़ुदको
न जाने कितने उड़ गए इन तूफानों मैं।-
मेरे तरफ से एक आखिरी कोशिश
जरूर होगी,
किस्मत रही तो एक मुलाकात
कभी तो होगी,
सवाल तो पूछ के रहूंगा उस
ऊपरवाले से,
क्या जरूरी था
इतने सारे दर्द की???
और वो रात मेरी ज़िन्दगी की ,
आखिरी रात होगी।-
उसने कहा -
"देखते हैं,अगर किस्मत में होगा
तो लौट के आना ही होगा"
एक बिजली कौंधी मन में,
था अंधकार गगन में,
अहंकार में हुआ मगन में।
"अगर है यही बात तो ,
असाध्य को मैं साधुंगा,
समय को भी बाँधूंगा।
देखते रहेंगे, देव, दानव,मनुष्य सब,
असंभव को संभव मैं ही करूंगा।"-
अंधकार में महारानी थीं,
शत्रुओं के नगरी को ही
अपना भाग्य मान बैठी थी।
एक अफ़वाह की आंधी ,
अब उठी है कहीं से,
राजकुमार जिंदा लौट
आया है मृत्यु की ज़मीन से।
अब इंतेज़ार उस दिन का होगा,
जब नगरी में हाहाकार होगा।
या तो महारानी स्वयं नगरी से
बाहर आएंगी
या स्वर्ग का द्वार खुला होगा।
जब सूर्य, चन्द्र में गति न होगी,
उस दिन राजकुमार ने
विध्वंस की छवि, रची होगी।
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जिसे वास्तव में प्रेम मिलता है,
वह इस बात को समझ ही नहीं पाता
कि सामने वाला उससे कितना प्रेम करता है..!
वह समझता है यह मेरी खासियत है
कि..मुझे प्रेम मिल रहा है !
पर वह सिर्फ उसकी ही खासियत नहीं होती,
उससे ज्यादा प्रेम करने वाले की खासियत होती है..!
प्रेम करना काबिलियत है तो,
प्रेम ग्रहण करना भी काबिलियत है।
जो मिल रहा है उसे श्रद्धा से, आदर से,
सिर झुका के ग्रहण करना चाहिए
तभी वह आपको अपनी पूर्णतः में मिलता है।
अक्सर प्रेम का जाने-अनजाने अनादर ही होता है-
हर एक रात
एक नई बात में लिखूंगा
तुझे हर पल
मैं अपने साथ लिखूंगा
अंधेरी रात और ठंडी हवाएं
तेरे हाथ में मेरा हाथ लिखूंगा
हकीकत में तुम कभी मिलोगी नहीं
लेकिन फिर भी,
एक किताब में अपनी
मुलाकात पर जरूर लिखूंगा,
मेरी किताब में सब
मेरी मर्जी का होगा
तू सो जाएगी जब,
मैं दिन को रात लिखूंगा
तुम मेरे क्यों ना हो सके
ये सवाल लिखूंगा,
और तेरे दिल में मैं नहीं हूं तो क्या
मैं तेरा हूं ये
मैं हर दिन हर रात लिखूंगा|-
मैं मर भी जाऊँ तो ईश्वर साक्षी रहेंगे,
मुझे तुमसे कुछ भी
नहीं चाहिए था
सिवा प्रेम के।
यह प्रेम देह से परे था,
यह समर्पण जीवन से बड़े था।
तुम्हारी मुस्कान ही मोक्ष थी मेरी
तुम्हारी यादें ही तीर्थ थी मेरी।
मैंने कोई सौदा नहीं किया प्रेम का,
बस तुम्हारी आत्मा में विलीन होना चाहा।
अगर ये प्रेम अधूरा रह गया,
तो भी सृष्टि के हर कण में रहेगा।
क्योंकि यह प्रेम किसी वचन से नहीं,
बस आत्मा की प्यास से जन्मा था।-
Wants to know
what's patience???
See it in my eyes,
I can Stop breathing,,...
just to make you realise
that you're correct ..-