भावनाओं का ज्वार फ़ूट जाना बेहतर है,
ज्वालामुखी फूटने पर तबाही निश्चित है।।-
जीवन को जानना चाहता हूँ,
लड़खड़ाता हुआ ही सही,
मगर खुद से चलना चाहता हूँ... read more
क्या लिखूँ-क्या छोड़ दूँ,
या तुम्हें खुद में खोज लूँ,
तुम गंगा सी- मैं यमुना सा,
चलो सरस्वती खोज लूँ,
क्या लिखूँ -क्या छोड़ दूँ।।१।।
गर हो संभव हर कुम्भ- महाकुंभ बना दूँ,
शताब्दियों की सदियाँ क्षण भर में ला दूँ,
बने त्रिवेणी संगम पर,
और पुण्य की एक डुबकी संग लगा लूँ।।२।।-
सबको अपने- अपने हिस्से का समय चाहिए,
मैं अपने हिस्से का समय किससे मांगू।।-
वर्चस्व की लड़ाई में सर्वप्रथम 'हम'
"स्वयं" से दूर हो जाते हैं।-
त्योहारों का आगमन भी है,
आम जनमानस सराबोर भी है,
भावनाएं भी ऊहापोह में है,
आर्थिकी भी चरम पर है,
लेकिन अपनी- अपनी व्यवस्थानुरुप
उल्लास औ आस्था का कारवां
चलते रहना चाहिए।
सदियाँ आयेंगी औ जायेंगी,
लेकिन ये कारवां निरंतर
चलते रहना चाहिए,
चलते रहना चाहिए।।-
नवोन्मेष का दीपक है मुझमें भी।
अन्धकार का प्रतिकार है मुझमें भी।।
असंख्य भीड़ में ही अकेला हूँ।
मैं तो अवसरों की इक लौ लिये निकला हूँ।।-
परमेश्वर की रचित सर्वोत्तम रचना लिख दूँ,
समस्त काल- खण्डों में अजेय योद्धा लिख दूँ,
क्यूँ न, माँओं के लिए एक नया उपमा लिख दूँ,
बस चले तो नोबेल से भी ऊपर सम्मान दे दूँ...(caption)-
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर परोसने से
शुरूवीरो की गाथा कलंकित नहीं होती अपितु
परोसने वाले का भय दिखाई पड़ता है।-