वो दिन नहीं रहे अब
जब हम एक दूसरे में खोए रहते थे
अपने मन की बातें एक दूसरे से कहते थे
जब तुम संकुचा के मेरा दीदार करती थी
मेरे संग पानी की खली बोतलें भरती थीं
मैं भी तुम्हारे संकोच को नाज़रदाज़ करता था
तुम बोतलों के ढक्कन खोलती , मैं उनमे पानी भरता था
जब तुम phone पर घण्टों अपनी बातें सुनाकर "बोर तो नहीं हुए" पूंछती
और मैं "नहीं बिल्कुल नहीं" बोलकर फ़िरसे तुम्हारी बातें सुनने को तैयार हो जाता
जब मैं तुम्हारी छोटी बातों पर अपने लम्बे-लम्बे explanation देने लगता
और तुम "छोड़ो हटाओ, जाने दो" बोलकर मुझे चुप करा देती थी
जब मैं तुम्हे परेशान करने के लिए अज़ीब नामों से पुकारता
और तुम भी चेहरे पर गुस्सा दिखाकर , मन ही मन मुस्काती थी
वो दिन नहीं रहे अब
पर मुझे पूरा विश्वास है
ईश्वर से यही मेरी इक आस है
वो दिन फिर लौट आएंगे
और हम फ़िरसे एक दूसरे में खो जायेंगे ।
-