आसमां देखूँ, मैं तो चांद ही चाहिए
प्रेम की बात उठे.
तो ज़िक्र तेरा होना ही चाहिए....
मैं पास हूँ, तेरे
आँखों में आँसू नहीं होने चाहिए...
कोई ज़रा करुणा मांग रहा...
थोड़ी तो रियायत मिलनी चाहिए
सब नहीं है खुदगर्ज यहाँ...
किसी पर तो यकीन करना ही चाहिए
तू देस दुनियां की रंगीनियत शानो-शौकत
मुझे तो बस तेरा साथ चाहिए.....
होते होंगें लोग मशहूर जगत में
मुझे तो गुमनामी की जिंदगी ही चाहिए....
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रंज है और रहेगा
जो खोया है वो कभी ना लौटा !
मगर ए वक्त
जितना तूने छीना था उससे कई गुना अधिक और बेहतर दिया
शायद यही है सिलसिला
और तेरा देने का सलीका !-
जो प्रेम सत्य था गौरा का तप था
भोले का वर था कष्ट से पूर्ण था
पर शक्ति का मिलन शिव मे सम्पूर्ण था।
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दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे
नफ़रत चढ़ती आँधी जैसी प्यार उबलते चश्मों सा
बैरी हूँ या संगी साथी सारे अपने लगते थे
बहते पानी दुख-सुख बाँटें पेड़ बड़े बूढ़ों जैसे
बच्चों की आहट सुनते ही खेत लहकने लगते थे
नदिया पर्बत चाँद निगाहें माला एक कई दाने
छोटे छोटे से आँगन भी कोसों फैले लगते थे-
क्या फिर सजे की महफिल
मेरो शब्दो की।
टूटा सा अकेला हू
ख्यालो मे डूबा
क्या पता फिर जुड़े
अक्षर इन जज्बातो का।
लगे है जख्म पर सासे रूकी नही
बाकी है कुछ दीदार
तभी मै रूका नही।
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Struggling for word's doesn't mean I loose the skill of writing ✍✍✍✍
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