Prasoon Tiwari   (Dr.प्रसून तिवारी "गर्दिश)
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Joined 15 March 2017


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Joined 15 March 2017
28 MAY 2018 AT 23:27

जब तक जागा, चांद की चांदनी दिल लुभाती रही
नींद मिली तो ख्वाबों में, तेरी यादों की धूप आती रही

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22 MAR 2018 AT 11:15

तोड़ दो मस्जिद मंदिर गुरद्वारे, क्यूं नमस्कार करते हो
सुबह पूजते हो देवता,दिन भर भ्रष्टाचार करते हो

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25 APR 2017 AT 20:44

तू बदले रंग, शरद शीत और ग्रीष्म
ना पिघलुंगा मैं, हूं कलयुग का भीष्म

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21 APR 2017 AT 20:45

हलक तक जो रोका है,बाहर भी लाओ
फ़लक तक हो आऊं, झलक तो दिखाओ

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18 MAR 2017 AT 14:39

कलम चलती रहे, मैं शब्दों के बिस्तर पर सो जाऊँ
कविता एसी लिखूं बस कविता का ही हो जाऊँ
कलम चलती रहे, मैं शब्दों के बिस्तर पर सो जाऊँ

जब तक हो स्याही, सांसें चलती रहें
मेरी शामें, पनों मे ढलती रहे
हृदय को एसा पलटूं मैं कागज पर
शब्दों में रक्त की धारा बहती रहे

जुबां भी पावन हो जब कविता गुनगुनाऊं
कलम चलती रहे, मैं शब्दों के बिस्तर पर सो जाऊँ

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17 JAN 2022 AT 12:12

मर कर क्या पता तरोगे या नहीं
बेहतर यही है तर कर मरो।

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1 JAN 2022 AT 12:29

नई सुबह है, नया भास्कर नई रौशनी आई है
समा गई है देह के भीतर, नई उमंगे लाई है
नई सुबह है, नया भास्कर नई रौशनी आई है

रोम रोम पुलकित हो बैठा, अंधकार सब नाश हुआ
साहस का बढ़ गया दायरा, मानो खुला आकाश हुआ
रूधिर भी पिघला बह निकला फिर, नए सपनों की आस लिए
कदम भी पथ पर दौड़ गए हैं, नई मंजिल की प्यास लिए

नई नवेली चमक धूप की, उर परिसर पर छाई है
नई सुबह है, नया भास्कर नई रौशनी आई है
समा गई है देह के भीतर, नई उमंगे लाई है

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28 DEC 2021 AT 15:56

नफ़रत से भरे पड़े हैं दिलों के पैमाने
प्रेम कहां से छलकेगा इन सारहीनों से

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17 DEC 2021 AT 6:44

किसमें क्या ढूंढता है
कुछ मिलना नही है
महज़ ये मूढ़ता है
कुछ मिलना नही है
किसमें क्या ढूंढता है
कुछ मिलना नही है



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8 DEC 2021 AT 23:13

सैनिक ही मौत की नज़रों से नजरें मिला पाया है
लेकिन सच ये भी है मृत्यु को कौन हरा पाया है।

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