prashi   (Prashi)
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Joined 12 May 2018


Joined 12 May 2018
23 MAY 2021 AT 10:44

मन मोरा चंचल जियरा उदास खड़ी रहूं जल भीतर मरू प्यास।

Unknown.

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1 OCT 2020 AT 16:06

शौक था इज्जत पाने का बहुत पर किस्मत से कौन बच पाया हैं
इज्जत का जनाजा भी उन्हीं से निकला जिनके इज्जत हम बनाए गए
सै दफा उनकी बेरुखी का सामना किया पर बेरुखी के कारण हम थे यह क्यों ना समझ पाएं!
तेरी बेरुखी का कारण जंजीरों से बंधा हमारा रिश्ता
यह गलत बात नहीं के तुम मुझसे बेरुखी से रहते हो
अरे वह हम हैं जो तुमको नाजो से रखते
वरना हक नहीं दिया सूरज को जो ताप से मुझे छू जाए।

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19 SEP 2020 AT 20:43

तूझसे जूझ रही हूँ जिन्दगी जाने कब से
हाला कि लोगों के सामने जिंदगी बेहतरीन है मेरी
पर तू है वह खास दोस्त जो देता है खंजर भोग पीछे से
खैर गलती तेरी भी नहीं जो खामखा तुम्हारे पीछे पढ़ी हूं मैं भी
अब देखना है तुम छोड़ोगे मुझे या खुद छूट जाऊंगी तुझसे।

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26 AUG 2020 AT 22:29

I am back🤪🤪🤪🤪🤪

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14 JUN 2020 AT 20:04

अब तो लगता है जिंदगी मेरी तराजू के बांटो पर है
और मेरी हर चीज तराजू से तौली जाएगी
किस्मत तो देखो तोलने वाला मेरा ही हमसाया है
फिर भी सोचता मुझ में उससे कम या ज्यादा है तराजू के पल्ले पे जहां मैं भारी होंगी
कतरा कतरा कम कर दी जाऊंगी कम होने पर थोड़ी और बढ़ाई जाऊंगी
समान बनाने के चक्कर में हर बार मुझसे ही मैं कम या ज्यादा होती जाऊंगी
और सिर्फ तराजू के अगले पडले के बराबर होने के फेर में मैं रत्ती भर ना बच पाऊंगी।

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14 JUN 2020 AT 9:47

जब तुम्हारी फिक्र की कोई कदर ना करें तो परेशान ना हो ,
क्योंकि वह तुम्हें बेफिक्र करना चाहता है खुद से
तुम्हारी कदर की कोई बेकद्री करें तो गम ना करना शायद कदर करने वालों में एक की कमी का उसे गम नहीं।

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11 JUN 2020 AT 23:42

सब यहां लिए दोहरे चेहरे हैं
हजूरी किए तो हम तेरे हैं
ना मंजूरी पे कौन हो मेरे
कितना बदल गया हैं प्यार का ऐ खेल
एक राजा के खातिर कुर्बान हुए कितने मोहरे है।

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11 JUN 2020 AT 17:20

तुम्हारे अपमान की थूक जब से मुंह पे पड़ी है
देखो वही वो बादल बन जमी है,
गुस्सा और दर्द की बूंदे बादलों में जम उमस बना रखी है।
जब संभाल नहीं पाती तपिश बादलों में तो आंखों से बरस पड़ती हैं,
लबों पे वहीं पानी बर्फ बनी जम सी गई है ।
जो झींगुर सी मीठी पर तुमको परेशान करने की आवाज तुम्हारे आसपास हुआ करती है ,
वो झींगुर भी उमस की गर्मी में जान दे बैठी है।
अब बारिश तो होती है पर हरियाली नहीं ,
होठों पर हंसी तो होती है पर खुशी नहीं ।

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7 NOV 2019 AT 14:50

Gost of past ........
A incomplete sad story.

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5 NOV 2019 AT 19:47

अब खुदा से शिकवा कम करने लगी हूँ,
ऐ नहीं कि मैं नास्तिक हो गयी हूँ,बस अब उनकी रज़ा को अपना मुक़द्दर समझने लगी हूँ।

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