तुम्हारे अपमान की थूक जब से मुंह पे पड़ी है
देखो वही वो बादल बन जमी है,
गुस्सा और दर्द की बूंदे बादलों में जम उमस बना रखी है।
जब संभाल नहीं पाती तपिश बादलों में तो आंखों से बरस पड़ती हैं,
लबों पे वहीं पानी बर्फ बनी जम सी गई है ।
जो झींगुर सी मीठी पर तुमको परेशान करने की आवाज तुम्हारे आसपास हुआ करती है ,
वो झींगुर भी उमस की गर्मी में जान दे बैठी है।
अब बारिश तो होती है पर हरियाली नहीं ,
होठों पर हंसी तो होती है पर खुशी नहीं ।
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