ना घूंघट ही सही है, न हिजाब सही है,
लड़कियों!तुम्हारे हाथों में किताब सही है।
हरा हो या भगवा हो,काला हो के मैरून,
ढके इज़्ज़त जो औरत की,वो लिबास सही है।
छीने जो तुमसे आज़ादी, हर शय वो ग़लत है,
फ़कत तुम ही सही हो,तुम्हारे ख्वाब सही हैं।
तुम बंदिशों के अँधियारे में कब तक घुटोगी?
अब तो तुम्हारी आँखों में आफ़ताब सही है।
अशफ़ाक़ की बेटी हो तुम,भगत सिंह की बहन हो,
हक़ छीन लो अपना, अब इंक़लाब सही है।
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