Prashant Upadhyay   (gehrisaansein)
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Kuch tum kaho kuch ham kahe
My own writings
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Joined 26 June 2020


Kuch tum kaho kuch ham kahe
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Joined 26 June 2020
15 JUL 2024 AT 12:11

ये क्या दिखा है मन को , मन क्यूं ठहरा जा रहा ।
आग लगी है कैसी धुआं बाहर नहीं आ रहा।।

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20 MAY 2023 AT 21:11


जो प्यास भुजा नही सकते, उन लहरों का शोर तो देखो

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18 MAY 2023 AT 17:13

उड़ जाना था उसे, हवाएं भी थी, पंख भी थे ।
ये इंसानों से बोल चाल, शोहबाजी तमाशा,
तोते को पिंजरों मे ले आया।

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14 MAY 2023 AT 10:15

मौन ही हो गया वो, जो अपराधी ठहराया गया था
देखा जब जमाने को मुनाफो से तकलीफ पूछते।

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4 APR 2023 AT 12:08

कुछ निकला ही नही बाहर, चिराग घिसता रहा अलादीन।
मैं मुझपे ही हसा था, हसा था जोर का एक दिन ।।



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31 MAR 2023 AT 14:15

घमंड ना हो बादशाह रानी को , इक्के को बड़ा बनाया गया ।
घमंड ना हो इक्का को, जोकर तास में लाया गया ।
जोकर कही इतरा ना जाए, उससे खेल से बाहर बिठाया गया




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30 MAR 2023 AT 21:10


बात होती जीत जाता वो, मौन उसे हरा रहा है।
नदी तक आया बहने को ,किनारों पर दिमाग लगा रहा है ।।

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25 MAR 2023 AT 12:54

प्रेम तुम्हारा प्रेम है, तो समझो रब ही Aim है ।
मैं तुम, ये वो, जीत हार सब कहेंगे Game है ।।

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19 MAR 2023 AT 10:20

देख पतंग के गले धागे, कोई समाजी धागा काट गया।
पतंग को आजादी मिली, वाह वाह लोगो का आ गया।
लोग समाजी को जीताते, धूल में पतंग समा गया ।

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12 MAR 2023 AT 18:02

कवि ने एक कहानी लिखी, लोगो की तारीफ निकली।
कवि ने इस बार पन्ना कोरा छोड़ा, लोग रो पड़े।

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