ये क्या दिखा है मन को , मन क्यूं ठहरा जा रहा ।
आग लगी है कैसी धुआं बाहर नहीं आ रहा।।
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My own writings
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उड़ जाना था उसे, हवाएं भी थी, पंख भी थे ।
ये इंसानों से बोल चाल, शोहबाजी तमाशा,
तोते को पिंजरों मे ले आया।
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मौन ही हो गया वो, जो अपराधी ठहराया गया था
देखा जब जमाने को मुनाफो से तकलीफ पूछते।
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कुछ निकला ही नही बाहर, चिराग घिसता रहा अलादीन।
मैं मुझपे ही हसा था, हसा था जोर का एक दिन ।।
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घमंड ना हो बादशाह रानी को , इक्के को बड़ा बनाया गया ।
घमंड ना हो इक्का को, जोकर तास में लाया गया ।
जोकर कही इतरा ना जाए, उससे खेल से बाहर बिठाया गया
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बात होती जीत जाता वो, मौन उसे हरा रहा है।
नदी तक आया बहने को ,किनारों पर दिमाग लगा रहा है ।।
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प्रेम तुम्हारा प्रेम है, तो समझो रब ही Aim है ।
मैं तुम, ये वो, जीत हार सब कहेंगे Game है ।।
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देख पतंग के गले धागे, कोई समाजी धागा काट गया।
पतंग को आजादी मिली, वाह वाह लोगो का आ गया।
लोग समाजी को जीताते, धूल में पतंग समा गया ।-
कवि ने एक कहानी लिखी, लोगो की तारीफ निकली।
कवि ने इस बार पन्ना कोरा छोड़ा, लोग रो पड़े।-