बरसों बाद यारों उसका आज फोन आया है,
उसने मेरा हाल नहीं परीक्षा का परिणाम पूछा है।
सुनकर उसकी आवाज यादों का सैलाब आया है,
बरसों बाद यार उसका आज फोन आया है।।
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यूं तो हर रोज आ जाते हो मेरे ख्वाबों में तुम,
मुझसे मिलने मगर इलाहाबाद नहीं आ सकते।-
किसी से खुश है किसी से खफा-खफा है,
वह शहर में अभी नया-नया सा है।
न जाने कितने बदन पहन कर के लेता है,
बहुत करीब है फिर भी छुपा छुपा सा है।।-
सुनसान रातों के अंधेरों में भी,
दिए के तले,
मैं अपनी किताबों से इश्क करता हूं।
कुछ इस तरह अपनी मंजिल की ओर रोज कूच करता हूं।
आज किताबें हैं तभी तो कल कुर्सी होगी ।
आज आम है तो क्या कल अपनी भी एक हस्ती होगी ।-
जलाएं हैं मैंने अपने अरमा, किसी गैर के दामन में
मैं आज भी सजाता हूं, उसके ख्वाब अपने आंगन में।
हम उनके होकर भी, उन्हें छूने से डरते रहे
जाने क्यों बो झूलते रहे, कीन्ही गैरों की बाहों में।-
उसके अरमानों का ख्वाब आज भी हम सजाते हैं।
रोते तो जरूर अकेले हैं, पर सरेआम हो जाते हैं।
डरते थे खोने से हम कभी उसको ,
आज खुद से हम बेखबर हो जाते हैं।-
आजकल खुदा भी मेरी शिकायत करता है,
करता हूं मोहब्बत तुमसे हर वक्त बात यही करता है। लोग कहते हैं रुठा है तेरा खुदा तुझसे ,
हां मैंने भी कह दिया मुझे नहीं पड़ता फर्क तेरे खुदा का, आजकल मेरा महबूब मेरी सलामती की दुआ करता है।-
मेरे महबूब तेरा जिक्र मैं जब भी करता हूं,
खुश रखे खुदा तुझे बस तमन्ना इतनी करता हूं,
रोता है जिगर मेरा तुझसे दूर है होने के बाद ,
आज भी रब से तेरी सलामती की दुआ मै करता हूं।
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इस जमाने की हर शख्सियत को करीब से मैंने देखा है,
गैरों की बात छोड़ो अपनों को अपनों से झगड़ते देखा,
जमाना कहता है रहता हूं बेहद खुश मैं हमेशा,
जनाब मैं किसी की याद मैने खुद को रोते हुए देखा है।-
आती है जब मुझे याद तुम्हारी,
उठाता हूं कलम एक फसाना लिखता हूं।
तुम्हारे आगाज को मै अंजाम लिखता हूं,
मेरे हादिश ही हैं दूर मुझसे,
तुम्हारे ख्याल में सुबह को शाम लिखता हूं।
आती है जब मुझे याद तुम्हारी।-