Prashant Solanki   (Prashant Solanki)
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Joined 5 February 2021


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17 HOURS AGO

मोहब्बत में मैंने खुद को मोम की तरह जलाया है,

अपने ही गर्म आँसुओं को अपने ही पैरों पर गिराया है।।

prAstya......(प्रशांत सोलंकी)

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18 HOURS AGO

मुझे खुद से कम दूसरों से शिकायतें ज्यादा थी,
मैं खुद में असफल था मुझे दूसरों की सफलताओं से शिकायतें थी।।

मैं उड़ ना सका इसलिए मुझे परिदों से नफरत थी,
मैं गिरता रहा, मुझे गिरने से नहीं जमीन के गड्डों से नफरत थी।।

मैं दूसरों की हार पर हँसता रहा अपनी हार को भूलकर,
मैं ऐसा तालाब था जो हरदम सूखा रहा बारिश में भी भीगकर।।

prAstya.........(प्रशांत सोलंकी)

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29 APR AT 9:36

वह दूर है मुझसे,
फिर भी मेरी आँखों के सामने रहती है,
मुझे मोहब्बत है उससे उतनी,
उसकी तस्वीर की जरूरत नहीं पड़ती है....!!

कभी बालों को हवा में फैलाती है,
तो कभी आँखों से इशारे करती है,
कभी मुझे देखकर शरमाती है,
तो कभी सीने से चिपक जाती है....!!

उसकी यादों में ऐसे डूबा हूँ,
जैसे सागर में बूंद डूबी रहती है,
मेरा धड़कता दिल सीप है उसके लिए,
जब खोलूं तो मोती बन जाती है...!!

यह पहला प्यार है मेरा,
यही अब आखिरी हो रहा है,
क्षितिज अधूरा है धरती के बिना,
उसकी यादों में यही अधूरापन पूरा हो रहा है..!!

मुक्कमल होगा इश्क़ मेरा,
अब मुझे इसकी भी परवाह नहीं है,
मैंने उसे अपना मान लिया है,
अब उसकी हाँ की भी जरूरत नहीं है..!!
prAstya........ (प्रशांत सोलंकी)


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28 APR AT 22:17

पहाड़ों से पूछो जब अभिमान से उफ़ना हुआ सीना दरकता है तो केवल मलवा ही निकलता है।।

PrAstya.........(प्रशांत सोलंकी)

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27 APR AT 7:48

तूने बहुतों को घुमाया होगा,
तूने बहुतों को रुलाया होगा,
मगर मैं वो आईना हूँ,
जिसे देख तूने खुद को सजाया होगा...।।

prAstya......(प्रशांत सोलंकी)

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25 APR AT 14:13

मोहब्बत में किसी का हाथ ऐसे पकड़ो कि,
हाथ छूट जाए मगर साथ ना छूटे....

prAstya.......(प्रशांत सोलंकी)

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25 APR AT 13:42

ये वोट का ही जोर है,
यही हल्लाबोल है,
ऐरोप्लेन में जो घूमता,
वही साला चोर है..।।

पैरों में आ पड़ा,
वोट के लिए गिड़गिड़ा रहा,
झूठ बोला, गाली दी,
टैक्स पर मौज काट रहा।।

उसकी औकात फोड़ दो,
वोट की चोट दो....

prAstya......(प्रशांत सोलंकी)



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25 APR AT 11:51

माँ-बाप संतान को पढ़ना-लिखना सिखाते हैं,
और संतान बड़े होकर उनके किए का हिसाब लगाती है..।।

prAstya.....(प्रशांत सोलंकी)

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25 APR AT 11:46

मतलबी दुनियाँ में रिश्तों को बदलते देखा है,
मगरमच्छों को दरियाओं की तरफ, और
इंसानों को पैसे वालों की तरफ भागते देखा है....

prAstya......(प्रशांत सोलंकी)

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25 APR AT 11:41

मतलबी दुनियाँ में रिश्तों को बदलते देखा है,
मगरमच्छों को दरियाओं की तरफ, और
इंसानों को पैसे वालों की तरफ भागते देखा है,
बादल ही हैं जो सूखी जमीन पर बरसते हैं,
वरना नालों को भी नदी की तरफ भागते देखा है,
भूखे रहकर माँ-बाप पेट भरते हैं बच्चों का,
और बुढ़ापे में माँ-बाप को वृद्धाश्रम में तड़फते देखा है।।
prAstya.......(प्रशांत सोलंकी)

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