Prashant Shukla   (Prashant shukla SANGAM)
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Trying to express what i feel and what i see ....
Instagram :- prashantshukla26
Joined 28 February 2018


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12 JUN 2020 AT 21:06

एक विरह गीत

पहले माथे में चूम मुझे
दे बाहों में लेने झूम मुझे ,,
मैं अथक प्रेम की हूँ प्यासी
मैं पिया मिलन की हूँ आसी ,,
सीने पर मेरे आग दबी
अधरों पर मेरे फाग दबी ।।


पूरी रचना कैप्शन में ....

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30 MAY 2020 AT 9:36

बेचैनी का ज़िक्र नही है ,,
मुझको शायद फिक्र नही है ,,
नींद तो बैठी राह निहारे ,,
नींद से बेहतर हिज्र नही है ।।

कितने बागों के माली ने
पानी देना छोड़ दिया ,,
सारी उगती कलियों को
किसने आकर तोड़ दिया ,,
किसकी लाठी की गूंजो ने
हाहाकार मचाया है ,,
किसने जा कर जंगल मे
शेरो को पाठ पढ़ाया है ,,

किसके हिस्से में आया है
नदियों का ये. निर्मल जल ,,
किसने बाँधा अम्बर को है
किसने बांधा जल तरंग ,,
किसको छूकर के माटी को
फिर सोना बन जाना है ,,
किसको सुन सुन कर के हमको
गाना है दोहराना है ,,

सब कुछ तुमको ही करना था
तो मुझको क्यों फिर भेज दिया ,,
खुद की ख़ातिर फूलों की राहें
मुझको काटों का सेज दिया ,,

#संगम

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22 MAY 2020 AT 21:18

प्रेम में लिखी कविताएँ
अक्सर
अधूरी रह जाती हैं ।

#संगम

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18 MAY 2020 AT 12:38

क्या इश्क़ भी मारा जाता है ,,
आशिक़ के मारे जाने से ।।

#संगम

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2 MAY 2020 AT 22:15

वज़्न :- 22 22 22 22

इक सूरत पर सुध-बुध वारी
रंग सुनहरा ज़ुल्फ़ें काली ।।

खन खन करते कंगना उसके ,
बजती छन छन पायल प्यारी ।।

मतला उसका बिंदी समझो ,
दोनो मिसरे उसकी बाली ।।

उसके गीतों को सुन सुन कर
फिर है गाती कोयल न्यारी ।।

अधरों पर जब नगमे रक्खे
गाये रातें सारी सारी ।।

सागर जैसी आँखे उसकी
जाने कैसी है अय्यारी ।।

बोसा उसके होठो का फिर ,,
हम भूलें सब दुनिया दारी ।।

गहनों में बस काजल रक्खे ,,
उसका यौवन तारी तारी ।।

संगम तुम तो बच कर रहना ,
उसके तीखे नैन कटारी ।।

#संगम

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27 APR 2020 AT 23:29

आंखों का जो काजल पोंछे ,
उसमे तो अय्यारी हो ।।

#संगम

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18 APR 2020 AT 14:04

मतला उसकी बिंदी समझो ,,
दोनों मिसरे उसकी बाली ।।

#संगम

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15 APR 2020 AT 12:16

अगर मैं रचनाकार हुआ ,
तो बनाऊँगा एक पुल ,

जिससे मन की व्यथित
चित्त अवस्थाओं के इस पार
से जा सकूँ उस पार ।।

#संगम

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7 APR 2020 AT 12:35

बहर :- फ़अ लुन--फ़अ लुन--फ़अ लुन--फ़अ लुन
वज़न :- 22 22 22 22

ये दुनिया कैसे चलनी है ,
सबको ही मन की करनी है।।

उलझी बैठी ग़ज़लें कितनी ,,
बहरों की ख़ातिर रहनी हैं ।।

ग़ज़लों की सूरत देखो तुम ,
हमको तो सीरत पढ़नी है ।।

मेरे लम्सों ख़ातिर तूने ,,
फिर नज़्में मेरी पहनी हैं ।।

पीड़ा जिसकी जितनी है अब ,
तो उसको उतनी सहनी है ।।

जिसके जितने मस'अले होंगे ,
तो उसकी दुनिया उतनी है ।।

इस दौर-ए-सियासत में आकर ,,
फिर नदियां उलटी बहनी है ।।

पेड़ों के सब पत्ते बोलें ,,
अब नींचे मेरे टहनी है ।।

असलो पर जब सर पटके हैं ,,
तो व्याजें उतनी बढ़नी हैं ।।

कहते कहते 'संगम' तुमको
फिर बातें कितनी कहनी है ??

#संगम

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27 MAR 2020 AT 18:14

रातें अक्सर लम्बी हो जाती हैं ,
जब छुप्पम छुपाई खेलती है नींद ,
खयालों के साथ मिलकर ,

पर ख़ुद भी इस सोच में डूबी रहती है ,
आख़िर धप्पा लगे भी तो किसे पहले ??

अगर धप्पा मुझे ( नींद ) लगा तो
सारे ख़याल टूट जाएंगे ,,
और अगर धप्पा ख़यालों को लगा ,
तो मेरा क्या होगा ??

आख़िर नींद का ख़यालों से राब्ता भी इश्क़ का है ,,
और आँकड़ा भी 36 का ।।

#संगम

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