यूँ तो सनसनाती हवाएं उसकी जुल्फें संवरने नही देती है, मेरी कोई भी गुस्से भरी बात उसे अखरने नही देती है, ज़माने भर की चालाकियां उसे निखरने नही देती हैं, लेकिन वो खुद बिखर कर भी मुझे बिखरने नही देती है।
करता हूँ इबादत मैं भी बहुत ऊपरवाले की कोफ्त तो बहुत है, पर काफिर नहीं हूँ मैं जो दिल में है वो चेहरे पर जाहिर है साफ साफ जज़्बातों को अपने छिपा सकूँ..शातिर नहीं हूं मैं