कभी मस्त कलंदर-सी,
कभी उफ़नते समंदर-सी,
कभी नदी-सी बहती है,
अब वो मुझमें रहती है......
कभी रातों की वीरानी-सी,
कभी मीरा दीवानी-सी,
कभी आँखों से बहती है,
अब वो मुझमें रहती है......-
लिबास बदल–बदल के जब भी वो गुज़रते हैं,
रंग उनके मिज़ाज के फ़क़त दिल पर उतरते हैं।
सूरज को गुमाँ हो तो हो अपने उजालों पर
उनकी ज़ुल्फ़ों के साये में कई सूरज बिखरते हैं।-
फिर न कर इश्क़ सिर्फ़ मुझे आज़माने के लिए
एक ज़माना लगा तुझे भुलाने के लिए
ना सुलगा मेरे दिल को तेरे इश्क़ की आँच पर
तेरी आतिश-ए-याद काफ़ी है मुझे जलाने के लिए-
अंगारा तेरे इश्क़ का बुझ नहीं पाता,
मुझे जानता है तू, पर समझ नहीं पाता
शीशे-सी नाज़ुक दीवार है तेरे-मेरे दरम्यान,
तेरा होकर भी मैं , क्यों तेरा हो नहीं पाता
इश्क़ में तेरे इतना रिस गया हूँ मैं,
मेरे ज़ख्मों से अब लहू भी नहीं आता।
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तेरी यादों से अब भी संवरते है हम
जलकर तेरे इश्क़ में अब भी निखरते है हम
आँसुओ को सहेजा है आँखों मे हमने
गिरते तो है पर अब बिखरते नहीं हम-
बाहरी दुनिया को जीतना या
भीतरी ब्रह्मांड को समझना, देखना और महसूस कर पाना।
बाहर की ओर बढ़ना या भीतर उतरना…
संग्रह के लिए दौड़ना या स्थिरता में ठहरना…
क्षणिक सुख पाना या आनंद की शाश्वत धारा में डूबना…
चुनाव हमारा है।
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अपरिपक्वता से परिपक्वता की यात्रा हमें क्षणिक भौतिक सुखों के स्थान पर शाश्वत आंतरिक आनंद को समझने , भीड़ की ओर आकर्षित होने की बजाय स्वयं के साथ रहने और वस्तुओं, भावनाओं तथा संसाधनों से जुड़ाव छोड़कर उन्हें सहजता से जाने देना सिखाती है ।
अहसास होने लगता है की क्रोधित होना सरल है, लेकिन मौन रहना शक्ति है।
भगवद्गीता में 'विविक्त-सेवी' शब्द का प्रयोग हुआ है — जिसका आशय है एकांत की ओर प्रवर्त्त होना..
यह समझ धीरे-धीरे हमें यह अनुभूति कराती है कि 'अकेलेपन का अंत ही एकांत है।'
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Real expansion is not outside; it happens inside. Knowing thyself is about realizing that peace was never to be found — only remembered — for it has existed within us, always and forever."-
बेज़ुबां ख़्वाहिशें और सिर्फ तेरी बातें हैं
किस्से , कहानियाँ और चंद मुलाकातें हैं
गुजरता रहा दिल के बदगुमान रास्तों पर
थमा बस वहीं जहाँ तेरी यादें हैं-