दरिद्र के चरित्र पर ही सवाल क्यूँ !
अमीर के जमीर पर नहीं बवाल क्यूँ ?
क्यूँ हैसियत के मापदंड में दुनिया चल रही
तन हिमशिखर सा, पर रूह जल रही ,
चल रही ये दुनिया अमीरों के हिसाब से
पिस रहे गरीब, चुप मगर अपने हाल से ,
कर्म से, किस्मत से, गरीब ढाल पे
देते हैं दिलासे खुद को ये कमाल के ,
दरिद्र के चरित्र पर ही सवाल क्यूँ !
अमीर के जमीर पर नहीं बवाल क्यूँ ?
सीखो राम से जिन्होने बेर शबरी के खाए
कृष्ण सुदामा की यारी के दुनिया गुण गाए ,
सत्त, द्वापर, त्रेतायुग में भेद ही नहीं था
सत्य-असत्य के रण में ज्ञान ही प्रथम था ,
लेकिन अहंकार भर गया है इस कलयुग में
है धनवान जो भी सर्वोत्तम है वो खुद में ,
गरीबी स्वयं से डरती
फिर अमीरी इतनी विशाल क्यूँ ?
दरिद्र के चरित्र पर ही सवाल क्यूँ !
अमीर के जमीर पर नहीं बवाल क्यूँ ?
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