Prashant Kumar   (प्रशांत कुमार)
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Joined 19 March 2024


Joined 19 March 2024
11 OCT AT 10:32

धीरे-धीरे अक्षरों की संख्या कम हो रही थी,
और बीच की दूरियां अधिक होती गयी।

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9 OCT AT 0:38

उसे देख लेने से मैं सब कुछ पा लेता हूँ,
उसे पा लेने से मैं पूरा हो जाता हूँ।
जब न देखूं फिर अधूरा सा हूँ मैं,
अधूरा हूँ फिर पूरा होना चाहता हूँ।

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16 SEP AT 11:08

एक दिन आएगा,
तुम्हे ज़रूरत होगी किसी की,
जो करे बात तुमसे,
और बेताब रहोगे पाने को।
फिर याद आएगी वो दिन,
जब था इंतेज़ार में कोई तुम्हारे,
ताकि कर लो उससे दो चार बात,
और भुला दो उसके गम,
ला दो सारी खुशियां,
पर तुम न समझ पाए,
जहाँ थी तुम्हारी ज़रूरत,
न गए वहाँ तुम,
फिर तड़पोगे तुम,
एक दिन आएगा जब,
होगी तुम्हे ज़रूरत किसी की।

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16 SEP AT 8:51

कोई अपना नहीं
सब सपने हैं,
गर अपने हैं
तो सब सपना है।

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15 SEP AT 11:58

स्मृतियों में ठहराव है।

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13 SEP AT 14:54

जो चला गया उसे जाने दो,
जो चल रहा है उसे जियो,
जो आने वाला है उसे स्वीकार करो।

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11 SEP AT 19:29

लोग बिना जाने,
बिना सुने,
बिना समझे,
दूसरों के बारे में निर्णय बनाने में आगे रहते हैं।
और उसके बाद उनको समझाओ तो वो तिलमिला जाएंगे।
इससे अच्छा उनको उनके रास्ते छोड़ दो।
और आप उस रास्ते से दूरी बना लीजिये।

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1 SEP AT 10:46

एक रोज़ तुम्हारे पास आऊंगा,
जोर से गले लगाऊंगा,
रो कर सारे गम,
तुम्हारे साथ मिटाऊंगा।

तुम हटाना मेरे आंसू,
बताना अपनी खुशियां,
भुला कर अपने सारे गम,
दो होकर हो जाएंगे एक हम।

अपने हाथ हाथों में रखना,
अपने सिर बाहों में रखना,
तुम जताना प्यार कुछ ऐसे,
मिलने को रोज़ तरसें थे जैसे।

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29 AUG AT 10:02

मैंने उसे देखा,
और देखते रह गया।
घर को आया,
देखना चाहा,
ख्यालों में उसे,
देखते रह गया।

रात हुयी जो
अंधियारी थी,
फिर उसे
मैंने देखा,
लेकिन कैसे देखा,
ख्यालों में नहीं..
नहीं...
आंखों से उसे देखा।

जो सामने थी,
वह सचमुच सामने थी,
पर सामने ना हो कर,
मेरे बन्द आंखों के सामने थी।

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27 AUG AT 16:15

क्लासरूम में जब बच्चे एक साथ बैठते हैं,
तो कोई अपने बगल वाले से यह नहीं पूछता कि –
"तुम्हारा धर्म क्या है? जाति क्या है? उम्र कितनी है?"
क्योंकि उनके लिए साथ बैठना ही सबसे बड़ी पहचान होती है।
अगर हम जीवन में भी उसी मासूम मानसिकता को अपनाएँ,
तो समाज में किसी बदलाव की ज़रूरत ही नहीं पड़े।
मैदान हो या क्लासरूम,
सभी खिलाड़ी, सभी विद्यार्थी – एक ही टीम का हिस्सा होते हैं।
यही असली इंसानियत है।

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