आपस का ये झगड़ा कुछ तो ,
उसको भी खलता होगा
बस मैं ही तनहा थोड़ी हूं ,
वो भी तो तनहा होगा
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वह करता रहा मेहनत खेतों में दिन रात
गर थोड़ी देर उठाता कलम स्लेट
तो,
फसलें सुधार लेता !
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तुझसे तो कोई गिला नहीं है
क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है
बिछड़े तो न जाने हाल क्या हो
जो शख़्स अभी मिला नहीं है
ख़ुश्बू का हिसाब हो चुका है
और फूल अभी खिला नहीं है
इक ठेस पे दिल का फूट बहना
छूने में तो आबला नहीं है
गिला=शिकायत; सिला=सफलता; आबला=छाला
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गैरत-बगैरत भला बुरा ये सब बातें हैं , बातों का क्या
तुम्हारे हर सवाल का जवाब देता हूं , मेरे सवालों का क्या
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सड़के सुनसान देख मन में उठा सवाल है
जो सड़कों पर ही बस्ते है उनका क्या हाल है
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बेहतर की उम्मीद में हूं , मगर बद्तर को तैयार हूं
या कोई मंजिल मिले , या नए सफर को तैयार हूं
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डर है घर में कैसे बोला जाएगा
छोरो.....जो होगा देखा जयेगा
मैं इक चेहरा पढ़कर जाऊंगा
मेरा पेपर कल को अच्छा जाएगा
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सूर्य जबतक क्षितिज से निकलता रहा
होके बेचैन मोम सा मै पिघलता रहा
सारा जहां था जब मोहब्बत की आगोश में
इक दिये सा था केवल मैं जलता रहा
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जाने किस तस्सवुर से सहमा हुआ हूं
कुछ दिनों से यूं ठहरा हुआ हूं
ना लिखने लायक न जलाने के काबिल
मैं हूं सादा कागज पर भीगा हुआ हूं ।-
मूसलसल सिल रहा मेरे अहसास को लफ्ज़ की सुई
ना जाने कब कौन सी बात ना - गवार गुजरी
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