वो बचपन में तुम संग बैठना,
हमे आज भी याद है,
झाँकना झरोखों से,
देखना चुपके से तुमको,
वो बिन दुपट्टे तेरा घर से बाहर आना,
हमे आज भी याद है,
मचलती तड़पती बेकरार सी,
उन अमावस की काली राते में
तेरा चांद बन कर आना छत पर आज भी याद है..!-
बस यही सोच कर उम्र हम गुजार लेंगे....
अब जब लिखने का सिलसिला यहाँ थमने वाला है
सोचा था नाम देंगे तुम्हे आफताब ए हुस्न
पर देते कैसे जब तेरा नजरिया बदलने वाला है-
और फिर आया एक ऐसा भी दौर
जीवन का मेरे रहा ना कोई ठौर
जिस और ढूंढा दरिया में साहिल मैने
हुआ वो किनारा उतना ही दूर-
जब वो हुआ मुझसे बेगाना सा
इससे पहले कुछ समझ हम पाते
वो बोले साहिल नही तू अपना सा-
खामोशियों से आज कल जिक्र है तेरा,
की उसके आगोश में हो जीवन का एक पहरा,
डूब कर उसकी उन झील सी काली आँखों मे,
साहिल लिख जाए अपनी कलम से नाम आफ़ताब तेरा..!!-
बडे बेसब्र से है आजकल ख्याल साहिल,
बस जानने को की तेरी रज़ा क्या है...!-
सारे शहर में जश्न है ईद का,
मेरा चाँद छुपा है अब भी बादलों के बीच!-
बस अब कोई शौक नही बचा जिंदगी का,
थोड़ी कट गयी बस थोड़ी सी और कट जाए...😊-
आज एक ग़ज़ल लिखते है,
साथ अपने एक जाम रखते है,
लबों पर जब रखेंगे आपके नाम का प्याला,
सोचेंगे साहिल हम आपको हरदम पास रखते है..!!-
किसी की यादे फिर हँसने की वज़ह बन गयी साहिल....
ये बात और है कि जुदा वो मुझसे आज ही हुआ था....!
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