जब कभी लौटो उन रास्तों से
जहां खो गए हो तुम
कभी जब पाओ कि अकेले ही
रह गए हो तुम
देखो जब आईना थोड़ा सा
मुरझा गए हो तुम
दुनिया की उड़ती हुई धुल में जब
खुद को सना हुआ पाओ तुम
तो चले आना
मेरी कविताओं में
मेरे हर शब्द को पढ़ना और
फिर हो जाना
‘तुम’-
अफसाना सा लगता है अगर
पलट कर देखूं तो
दूरियां होते हुए भी जहां
बातें सिरहाने से हुआ करती थीं-
कितने गुमान से भरा है ये शख्स
जैसे हासिल हो इसे सारे जहां की मोहब्बत
मिलते ही क्यों है, होती ही क्यों है ?
जब बन्ना ही नहीं होता इसे हकीकत !
लफ्ज़ थक जाते हैं
बयां करते करते.. ..
ना कुछ सुनती है ...ना कुछ कहती है
मौन सी ये श्रवणरहित मोहब्बत
ज़मीर बेचकर गले लगाया है उसने किसी को,
यहां कसमें वादे सब नकलीं बेचे जाते हैं
एक दुकान से बढ़कर और
क्या है ये मोहब्बत ?
सारे मौसमों को करके सुहाना
भीगते हुए बारिश में रुलाती है मोहब्बत
अश्क तक सूख जातें हैं रुसवाई में
गर्मी में पड़ती धूप है ये मोहब्बत
दिल में भरे अरमानों को खाली करना
काम है इसका .....
नापतोल से चलते जीवन में
सबसे वजनदार है ये मोहब्बत!-
पास जाओ तो बादलों की में ओट छिप जाता है, ये चांद
बहुत घमण्डी है….
इस पर लगा काला वो दाग,
हम नज़रअंदाज़ भी कर दें .....
फिर भी इसे रत्ती मात्र की परवाह नहीं !-
घण्टों बैठकर सोचता हूं
कुरेदते हुए कागज को
कागज फट जाता है लेकिन
एक शब्द नहीं लिखा जाता
अब यहां मुसलाधार बारिश का भी
कोई असर नहीं होता ....
पत्ते सूखकर डालियां छोड़ देते हैं
डालियां उन्हें पकड़ते हुए
शज़र छोड़ देती हैं
मिट्टी की उड़ती धुंध भयावह
वीरान सा आशियाना बना लेती है
और उस खड़े हुए स्थाणु से
आवाज़ आती है, कि
तुझे खबर तक नहीं, तूने
इस शख़्स को कितनी गहरी
चोट दी है !-
मैं एक कहानी कहा करता था और
वो चुपके से बैठकर सुना करती थी
एक लड़की थी पागल सी जो
मेरी हर बात पर नकल किया करती थी
मैं उसे अपना सबकुछ और वो
मुझे दोस्त माना करती थी
इतनी भोली थी कि फूलों को
भी दोस्त माना करती थी
और
पागलपन इतना कि
फूल छोड़ कलियां
तोड़ लिया करती थी
वो कैसी लग रही हूं पूछती थी मुझसे
और मैं चांद दिखा दिया करता था
इससे ज्यादा एक खूबसूरत चेहरे को
और क्या कहा जा सकता था ?-
कितना अच्छा होता अगर किसी लौटते हुए को
कोई गले लगाकर रोक लेता, लेकिन
कुछ अलविदा कह दिए जाते हैं गले लगाकर भी
क्योंकि अब वो पांव यहां रुकने नहीं वाले ।
बढ़कर अपने से चाहने को कहते हो, अरे
हमने सबसे बढ़कर चाहा, क्या बात करते हो !
अच्छा छोड़ो ये गिले शिकवे और ये बताओ
हमें कभी याद करते हो ?-
जा रहा हूं अपने आप को करके रुस्वाह
मैं अब वो नहीं रहा जो दो मिनट पहले था !
आईने का वक्त हो चला है मुझे भी वहां,
पहुंचते पहुंचते दूसरी तरफ खड़े एक शख्स को
अपने किरदार गिनाने होंगे!-
गया था मिलवाने अपने नाम से तेरा नाम
जाते-जाते उस रब से...
गुण अठारह से ऊपर ही मांगे !-
तेरी एक झलक पाकर तबीयत खुश हो जाती है
मैं किसी अन्धेरी कोठरी में अचानक जले दिए की तरह चमकने लगता हूं
तुमने सुना है गर कि मैं तुम्हें याद नहीं करता हूं
तो मैं झूठ बहुत बढ़िया बोलता हूं ये मान ले
जो ना हो यकीं तो.....मेरे यारों से पूछ ले !-