Prashant 'Bebaar'   (प्रशान्त 'बेबार')
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Poet & Writer
Joined 20 August 2018


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Joined 20 August 2018
11 APR 2023 AT 14:04

वो क़िस्मत वाले होते हैं जो अक्सर भूल जाते हैं
हर इक शय याद रहना भी बड़ा दुखदायी होता है

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26 JAN 2023 AT 9:21

|| जान मेरी ये वतना दी, हँसके मिट्टी पे वारी है
रूह मिलेया मिट्टी विच, एहि मुझमें बाकी सारी है ||

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27 FEB 2022 AT 15:58

Zindagi ko bhala haq hai
mere KhwabaN miTaane ki
Meri tadbeer mei lekin
Zid hai kuch kar dikhane ki

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9 FEB 2022 AT 8:39

वो दिन इज़हार का है याद अब तक इस कदर मुझको
कि जैसे रातें उसके बाद सब जगकर गुज़ारी हों— % &

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5 FEB 2022 AT 17:28

पीली कुर्ती, टीका, चूड़ी, तुम पहनके जब भी आयी हो
कोई फ़ज़ा हो दिल को तो ये, बस बसंत महसूस हुआ— % &

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8 JAN 2022 AT 18:02

आतिश-ए-उल्फ़त में क्या क्या हो गया
इक नमाज़ी, इक शिवाला हो गया

अब चलो मर के भी यारा देख लें
चैन से जीये ज़माना हो गया


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14 NOV 2021 AT 15:25

नए वक़्त की वबाली तह में
पुराने पलों की सलवट लिए रहता हूँ
बड़े होशियार और दिमाग़ी दिलों से
दूजी जानिब करवट लिए रहता हूँ

सफ़र-ए-वक़्त में जवानी के नोट जाने कहाँ भीग जाएँ
सो मैं जेब में बचपन के सिक्कों की खनक लिए रहता हूँ

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4 NOV 2021 AT 11:00

उम्मीदों के दिये हों रौशन
खील-बताशे लाएं ख़ुशहाली
जगमग महके घर-आँगन
खुशियों से भरी हो दीवाली

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24 OCT 2021 AT 8:10

'चॉकलेटी' रात में अपने 'वनीला' चाँद की ख़ातिर
सुबह से वो दुल्हन, बिन एक घूँट पानी के बैठी है

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23 OCT 2021 AT 15:14

मैं अपनी मुफ़लिसी पर सिर पटकने ही वाला था कि
बच्चे खिलखिलाकर बोले, "पापा दिवाली आ गयी"

✒️ मुफ़लिसी : ग़रीबी

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