वो क़िस्मत वाले होते हैं जो अक्सर भूल जाते हैं
हर इक शय याद रहना भी बड़ा दुखदायी होता है-
|| जान मेरी ये वतना दी, हँसके मिट्टी पे वारी है
रूह मिलेया मिट्टी विच, एहि मुझमें बाकी सारी है ||-
Zindagi ko bhala haq hai
mere KhwabaN miTaane ki
Meri tadbeer mei lekin
Zid hai kuch kar dikhane ki-
वो दिन इज़हार का है याद अब तक इस कदर मुझको
कि जैसे रातें उसके बाद सब जगकर गुज़ारी हों— % &-
पीली कुर्ती, टीका, चूड़ी, तुम पहनके जब भी आयी हो
कोई फ़ज़ा हो दिल को तो ये, बस बसंत महसूस हुआ— % &-
आतिश-ए-उल्फ़त में क्या क्या हो गया
इक नमाज़ी, इक शिवाला हो गया
अब चलो मर के भी यारा देख लें
चैन से जीये ज़माना हो गया
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नए वक़्त की वबाली तह में
पुराने पलों की सलवट लिए रहता हूँ
बड़े होशियार और दिमाग़ी दिलों से
दूजी जानिब करवट लिए रहता हूँ
सफ़र-ए-वक़्त में जवानी के नोट जाने कहाँ भीग जाएँ
सो मैं जेब में बचपन के सिक्कों की खनक लिए रहता हूँ-
उम्मीदों के दिये हों रौशन
खील-बताशे लाएं ख़ुशहाली
जगमग महके घर-आँगन
खुशियों से भरी हो दीवाली-
'चॉकलेटी' रात में अपने 'वनीला' चाँद की ख़ातिर
सुबह से वो दुल्हन, बिन एक घूँट पानी के बैठी है
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मैं अपनी मुफ़लिसी पर सिर पटकने ही वाला था कि
बच्चे खिलखिलाकर बोले, "पापा दिवाली आ गयी"
✒️ मुफ़लिसी : ग़रीबी-