Naa jaane teri begairat ne mujhe kaisa tod diya hai
Ke har dukhan se ro padta hu dil esa tod diya hai
Ab mera haal jaanne wale yehi batate hain,
Vehshi ne phool soongh kr tehni se tod diya hai-
अरसा गुज़ारा ख़ामोशी में,
मुझे अब कुछ लिखना है,
तू नज़दीक और मेरे आजा
मुझे तेरी आंखों में दिखना है
कहीं खो जाऊं तो कोई घर पहुंचा सके
इसलिए हथेली पर तेरा नाम लिखना है
मेरे वहशी इरादे नहीं हैं सनम,
पर मुझे सरे बाज़ार तेरे नाम पर बिकना है ।-
तेरे साथ समुद्र किनारे जाकर महसूस किया
लहरों पर पूर्णिमा के चांद से ज्यादा असर तेरा ही होता है
ज़रूरी नहीं लिखी जाए हर बार एक लम्बी नज़्म,
"तुम्हारा नाम" लिख देना भी कविता ही होता है ।-
तेरे दिन का हिस्सा बनने का मुझे गुरुर है,
तू कम ज्यादा जितनी मिले, मुझे अब मंज़ूर है ।
तू तो खुदा का पैगाम है, जिसे पाने में ज़िंदगी गुज़र जाए,
गुजरती है तो गुज़र जाने दे, मुझे मंज़ूर ये दस्तूर है ।
तू कम ज्यादा जितनी मिले, मुझे अब मंज़ूर है ।-
इत्र की खुशबू और नशा शराब का,
सब भूल चुका है, दीवाना "तेरे-शबाब" का !
मेरे मन में बस गई है बस तेरी ही खुशबू ।
नहीं महकता अब मेरे लिए कोई फूल गुलाब का !
गरज़ चुके हैं बादल मेरी खिड़की में ।
मुझे लगता है मौसम आ गया है बरसात का ।
तेरा मेरा साथ अब मुझे लाज़मी लगता है
नहीं करता मैं इंतजार अब तेरे जवाब का ।-
शौंक की उमर में हम
सब्र करना सीख गए
हम अंधेरे कमरे में
अकेले रहना सीख गए
कभी बड़ा अड़ियल था दिल
पर अब मनाना सीख गए
हो भले ही एक तरफा
जिम्मेदारी से इश्क निभाना सीख गए
हम भी हो सकते थे बेगैरत
कह सकते थे कि बेहया होना सीख गए
इश्क एक ज़िम्मेदारी का काम है
और हम सबका दिल रखना सीख गए
तुम पूछते हो क्या हुआ है हमको
मोहब्बत से भागना क्यों सीख गए
अपना दिल टूटेगा तो जानोगे
पंछी दाना डालने वालों से डरना क्यों सीख गए
अब भी तुझको चाहते हैं
पर बिना उम्मीद रखे दिल लगाना सीख गए
शौंक रखने की उमर में प्रांजल
हम सब्र करना सीख गए ।-
तू जब जब मेरी करीबी को तरसी है
हर शाख के पत्ते पर ओस बरसी है
जंगल ने सुबह चिड़ियों से मुझे संदेशा पहुंचाया
आज तेरी मोहब्बत, तुझसे मिलने को तरसी है
तुझसे मिलने की बेइचैनी में कुछ भी पहन आया हूं
गर्मी का मौसम है, और मेरे बदन पर जर्सी है
खुशनसीब कहता हूं, मैं दिन रात खुद को,
तू मेरी जिंदगी की वो बारिश है, जो राग मल्हार से बरसी है ।-
माना दूर है, पर तेरे शहर का नक्शा याद है
मुझे तो तेरी खिड़की के पर्दे का भी रंग याद है
मत पूछो कैसे जानता हूं मैं तुम्हारे घर का पता
मुझे उस गली से वो खुशबू आती है, जो तुम्हारे नाम से याद है।
वो पहली दोपहर थी, जब गर्मी की धूप ठंडक बरसा रही थी,
मेरी आंखों को हमारी पहली मुलाकात याद है
चलो अब फोन रख दो, और आजाओ कल शाम मुझसे मिलने,
तुम्हे एक नगमा सुनाना है, जो मुझे तुम्हारे नाम से याद है ।-
शहर के पतझड़ में माली ने ख्वाब सजाया था
आंधियों से छुपा कर, एक गुलाब लगाया था ।
कोई चुरा ना ले उसको, सब इंतजाम थे लेकिन
गुलाब ने मधु मक्खियों के लिए अपना शबाब लगाया था ।
उसके बागीचे में रहा उसके दिल का टुकड़ा ये गुमान था माली को
और बेहया फूल ने दिन दहाड़े अपना मिठास लुटवाया था ।
झूठे फूल नहीं चढ़ते आरती की थाली में,
गुलाब का पाप है, कि उसने माली से पाप कराया था ।-
कैसे आएगी इस शहर की मिट्टी से खुशबू
यहां की बारिश का पानी तुझे छू नहीं पा रहा
मेरी हसरतों का ज़िक्र लिखूंगा डायरी में एक रोज़,
पर तेरे नाम के बाद क्या लिखूंगा ये समझ नहीं आ रहा
तुम दोबारा देखो मेरी अलमारी खोल कर,
कैसे तुम्हे तुम्हारी यादों का संदूक नहीं मिल पा रहा
सजने को बेताब हूं मैं तेरी आंखों में,
पर इस काजल को खुदा mascara नहीं बना पा रहा
तेरे कानों के पीछे, बालों के नीचे लगकर तुझे बुरी नज़र से बचाऊंगा,
कोई नहीं कहेगा ये काजल तेरे काम नहीं आ रहा।-