हज़ारों मीलों की दूरियाँ, पलक झपकते तय कर लेता हूँ
वो क्या है न, थोड़ा सा घुमक्कड़ी हूँ मैं......
जब होश हो तो पैदल चल पड़ता हूँ
न हो तो खाबों में सैर कर लेता हूँ !
ये,,,,, ये जो सपनों की नगरी है न......
झपकते पलक भर में मुझे जहान घुमा लाती है
इसलिए चल चल कर जब थक जाऊँ
..........तो थोड़ा आराम कर लेता हूँ !
वो क्या है न, थोड़ा सा घुमक्कड़ी हूँ ना......
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