सह्याद्रीच्या कुशीत जन्म घेऊनी
वाघा सारखा दहाडला
पुरले मना मनात स्वराज्य त्याने
सिंहासनाधिश झाहला!
उलटून गेल्या कित्तेक पिढ्या
अजूनही आठवण त्याची जागी आहे
साधी सुधी माती नाही हो ही....
माझ्या शिवरायांची भूमी आहे-
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चली गई सर्दियां यारो
बरसात भी रुक गई
आगया गर्मियों का मौसम
सारी सड़के तप गई
आइसक्रीम, छास का पिटारा
सबने देखो भर लिया
जो रखते थे पंखा एक पर
उन्हों ने भी पाच पर कर दिया
छुट्टियों का सिलसिला
जल्दी ही आयेगा
हर बच्चा अपने मां को लेकर
मामा के घर जायेगा
खतम होगी एक दिन
ये सारी मीठी यादें
बह जायेगी पानी की तरह
जब होंगी बरसाते
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क्यो रुक जाए हम
जबकि पाव मेरे थके नही
क्यो रुक जाए हम
करी हुवी गलतियों से हम सीखे सभी
क्यो रुक जाए हम
क्योंकि रुकने कुछ वजह ही नही
एक दिन रुकेंगे हम
जब होगा समय सही-
खामोशियों मैं जाने हम कबसे जी रहे है
वही गटर का पानी उबाल उबाल के पी रहे है
सरकार को फरक नही पड़ता हम जिए या मरे
ढेर सारे पैसों से उनके लॉकर है भर पड़े
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तेरे नैनो मुझपे
कब्जा कर लिया है
तेरी हसी ने मुझे
घायल कर दिया है
तेरी अदा ने
मेरे दिल मैं घर करलिया है
अब क्या करू मैं इस दिल का
जो तेरे पीछे बेहाल है?...
कितना भी देखूं मैं तुझको
पर धड़कता हर बार ये....
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कसम खाने वाले लोग
अकसर झूठे होते है
क्योंकि उन्हें सही होने की
गवाई देनी पड़ती है-
बीत गई बाते सारी
जो तू मुझसे किया करती थी
बीत गई वो यादें सारी
जो तू मेरी गली से गुजरा करती थी
बीत गया वो समय सारा
जो हमने संग बिताया था
बीत गया वो जमाना सारा
जो हमने तुम्हारे नाम किया था-
मुश्किलें आयेंगी राह मैं
तुम्ह उन्हें दखलंदाज करना
युही सपने नहीं होते पूरे
बनता है लहू का गिरना.....
बांधकर पट्टी उसपर
तुम्हे आगे बढ़ना है
अभी तो दर्शन हुवा है भगवान का
तुम्हे तो कलश तक पोहचना है....
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मूषक जी वाहन उनका
मुकुट सरपर सजाया है
मकर सजा है फूलों से सारा
देखो विघ्नहर्ता आया है
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