Pranav Pandey   (प्रणव दीप●●●✍️)
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Joined 1 January 2019


Joined 1 January 2019
22 MAY 2019 AT 15:22

हम उन्हे रूलाते हैं, जो
हमारी परवाह करते हैं.
(माता पिता)
हम उनके लिए रोते हैं, जो
हमारी परवाह नहीं करते...
(औलाद )
और, हम उनकी परवाह
करते हैं, जो हमारे लिए
कभी नहीं रोयेगें !...
(समाज)

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17 MAY 2019 AT 13:53

समस्या का अन्तिम हल माफी ही है..
कर दो या माँग लो.....

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6 MAY 2019 AT 23:29

नजर हो साफ जिनके वह सभी से दिल से मिलते हैं,
जहां में चाहने वाले बहुत मुश्किल से मिलते हैं,
यह दुनिया वो समंदर है कि जिसमे है तैरना मुश्किल,
जिन्हें हो डूबने का डर वो सब शाहिल पर मिलते हैं,
नजर के तीर हम पर इस कदर तुम क्यों चलाते हो,
कि जब मिलते हैं तुमसे तो लगता है कि हम कातिल से मिलते हैं......

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6 MAY 2019 AT 13:20

सदियाँ गुज़र जायेगी,
लम्हें बदल जायेंगे ।
हम कल भी थे ,
हम आज भी हैं , और
हम कल भी रहेंगे साथ ।

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6 MAY 2019 AT 0:51

जब भी मिलता है मौका हंस लेता हूं खुलकर
क्या पता कब जिंदगी रूला जाये

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6 MAY 2019 AT 0:46

हो गयी थी बंद गुफ्तगू
दरम्यां हमारे
पर हमें तो उनसे
रिश्ता निभाना था

थम गये थे बीच राह में
वो थककर आज तो
पर हमें तो संग उनके
बहुत दूर जाना था

हो रहा था दर्द
उनकी हरकतों से
पर हमें तो केवल
मुस्कुराना था

छोड़कर जाते कहां
उनको भला
उनके दिल में ही तो
अपना ठिकाना था

कह रहे थे
हम नहीं नाराज हैं
था पता हमको ये
फकत इक बहाना था

दीपिका

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5 MAY 2019 AT 23:59

न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है
न गुज़र हदों से न हद बता यही दायरा है ये ठीक है

न तो आश्ना न ही अजनबी न कोई बदन है न रूह ही
यही ज़िंदगी का है फ़ल्सफ़ा ये जो फ़ल्सफ़ा है ये ठीक है

ये ज़रूरतों का ही रिश्ता है ये ज़रूरी रिश्ता तो है नहीं
ये ज़रूरतें ही ज़रूरी हैं ये जो वास्ता है ये ठीक है

मेरी मुश्किलों से तुझे है क्या तेरी उलझनों से मुझे है क्या
ये तकल्लुफ़ात से मिलने का जो भी सिलसिला है ये ठीक है

हम अलग अलग हुए हैं मगर अभी कँपकँपाती है ये नज़र
अभी अपने बीच है काफ़ी कुछ जो भी रह गया है ये ठीक है

मिरी फ़ितरतों में ही कुफ़्र है मिरी आदतों में ही उज़्र है
बिना सोचे मैं कहूँ किस तरह जो लिखा हुआ है ये ठीक है

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3 MAY 2019 AT 17:36

साथ छोड़ने वालों को तो एक बहाना चाहिए,
वरना निभाने वाले तो मौत के दरवाजे तक साथ नही छोड़ते

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1 MAY 2019 AT 22:11

“यार से ऐसी यारी रख,
“दुःख में भागीदारी रख!

“चाहे लोग कहे कुछ भी,
“तू तो जिम्मेदारी रख!

“वक्त पड़े काम आने का,
“पहले अपनी बारी रख!

“मुसीबते तो आएगी,
“पूरी अब तैयारी रख!

“कामयाबी मिले ना मिले,
“जंग हौंसलों की जारी रख!

“बोझ लगेंगे सब हल्के,
“मन को मत भारी रख!

“मन जीता तो जग जीता,
“कायम अपनी खुद्दारी रख!!!!!!

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1 MAY 2019 AT 22:02

मैं #दीपक हूँ.........
फितरत में है उजाला करना।
पर क्या करे यारो,
दुनिया समझती है।
मैं मजबूर हूँ जलने के लिए।।

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