वो तो है, पूरा का पूरा बाजार,
मैं कहां, एक "हामिद" सा खरीददार।
ना दिया, साथ उसने न सही,
मैं कौनसा उसका था कोई रिश्तेदार।
वो जब मुझे देख मुस्कुराया ना था,
देख तो ली थी, मैने उसी दिन अपनी हार।
खतम हुआ मतलब, छंट गई महफ़िल,
सब भागे सम्हालने अपने-अपने घर बार।
कौनसी मुहब्बत, कौनसे वादे,
अरे कौन से यार ।।
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हां, है तू बला की खूबसूरत,
हाय ये शरारती मुस्कान, उफ़ ये कातिल नज़र,
पर तू भी मुझे याद रखेगी,
जा मैं तुझसे मुहब्बत नही करता।।-
भले जोड़ लो धन संपदा ,
जिसका ना कोई अंत हो,
चाहते हो परम सुख, तो करो प्रेम ,
प्रेम जो जीवन पर्यंत हो।,
करोगे जो तुम निश्छल प्रेम ,
पाओगे वो सुख जो अनंत हो ।
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आओ तुम्हे एक किस्सा सुनाए....
हमारी बेरंग ज़िंदगी का,
जो था रंगीन हिस्सा सुनाए....
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बाप रोकता है अपने जवान बेटे को,
क्युकी उनको रोका था उनके बाप ने ,
बेटा भी रोकेगा खुदके जवान बेटे को,
सुनेगा इनमें से कोई भी नहीं, अपने बाप की
चलता रहेगा,रोक टोक का विफल सिलसिला।
क्यूंकि पसंद नही आता जवानी में कोई टोके तो,
जवानी जोखिम का दूसरा नाम है,
ठहरकर सोचना भी भला कोई काम है।
जवानी चाहती है, अपनी राहों को खुद करना तलाश,
भटकना, गिरना, उठना, हारना, जीतना या होना निराश।
नहीं लगाते वो बड़ों बूढ़ों से तजुर्बो, नसीहतों की आस।
उम्रें गवाह है,
जवानी हिदायतों से नहीं, चोटों से सीखती हैं ।
थोड़ा बढ़ने दो, गिरने दो, हारने दो, लड़ने दो उन्हे भी,
ज्यादा नसीहतें, जिंदगी का रोमांच खत्म कर देती है ।
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वक्त ने दुनियादारी हमें भी सिखाई थी,
पर हम आवारा, आवारा ही रह गए ।
उसने कहा था इश्क विश्क कुछ नहीं होता,
हम ही थे जो उस पर मरते चले गए ।
मतलबी है दुनिया, हमें पता था बहुत पहले,
मलाल ये है, हम मतलब पूरा करते रह गए ।
ऐसा भी नहीं की ज़िंदगी ने मौके न दिए
हम ही थे जो बिगड़ते चले गए ।
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सारी रात जागे हम सवेरे के इंतजार में ,
सूरज निकलते निकलते आंख लग गई ।
ताउम्र सफर किया कामयाबी की तलाश में ,
कामयाबी मिली तो हाथ से फिसल गई ।-
तू खुद की परवरिश पर शक न कर मां,
तूने तो बड़ा किया एक मासूम सा बच्चा।
वो तो ये जमाने का करम है
जो हुए हम बेदिल बेदर्द बेरहम मर्द ।-
एक दिन वक्त निकाल के समझेंगे
तौर ए दुनिया, मतलब ए ज़िंदगी क्या है,
फिलहाल तो काफिर इश्क में हैं गाफिल ,
अभी तो कुछ समझ आ रहा है नहीं ।-
आसान हो जाएगी ज़िंदगी, बस इतना सीख लो,
कोई मुसीबत में हो तो मदद दो, नसीहत नहीं ।
उसने खुद को तोड़कर , तुम्हे बनाया हैं,
बाप बूढ़ा हो जाए तो उससे दुआएं लो, वसीहत नहीं ।
लाख बुलाए शैतान तुम्हे , पर रहना इंसान ही
वहशियों की खुदा के दरबार में खैरियत नहीं ।
में तो एक आम सा बंदा हूं, थोड़ी मुहब्बत मिल जाए,
इससे ज्यादा तुझसे कुछ मांगने की मेरी हैसियत नहीं ।
मुफलिसी में ही सही, बस सुकून चाहता है दिल ,
दूसरो के करोड़ों देख के बिगड़े ऐसी अपनी नियत नहीं ।-