Pran   (प्राण)
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Joined 20 September 2018


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9 DEC 2023 AT 2:47

ना समझ ऐ जिंदगी में बन चुका अभी
यूं ख्वाबों का आना भुला चुका कभी
अंधेरे की चादर ओढ़ कर भी
ना सो सकूं मैं
ना जाने कैसी है यह जिंदगी ।।


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9 DEC 2023 AT 2:18

वक्त का लिहाज़ कुछ इस तरह बदला
के माया के पाश में इंसान स्वयं की छाया का साथ भी छोड़ उठा ।।

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20 OCT 2022 AT 15:33

हालातों का यह हिसाब है
नौजवान बेजुबान है
न कद्र किसी की उसको
जैसे शमशान में जलती लाश है
लेकिन है परवाह उसको जो न हुआ हासिल
एक मुस्कुराहट मां बाप की जिसके लिए बेबस बैठा इंसान है

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13 JAN 2021 AT 3:17

बहुत जागी है रातें मेरी
अब इन्हें सोने दो
मन ही मन बात दफ़न है
अब इन्हें रोने दो
आंखों में जो कोसा पन है
उसे वैसा रहने दो
चेहरे की मुस्कान ओझल है
मुंतशिर ख्वाबों को रहने दो

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11 JAN 2021 AT 19:58

कहां से शुरुआत की थी मुझे याद है
कहां आ पौंचा हूं पता है
बेफिक्र होकर जीता था
और मस्त मॉजी बंदा था
टेंशन के मेंशन पे यारियों का अड्डा था
वक्त ना लगा मेरी सीमाओं को समाप्त करने में
आज खुद से दूर हूं जैसे कलयुग अपने विनाश से

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9 DEC 2020 AT 20:52

बस इस उम्मीद में जी रहा हूं
की जो में कर रहा हूं वो सही है
या फिर जो हो रहा है वो
गुफ्तगू भी करूं तो किस से करूं
इन बेजुबान दीवारों से इनसे क्या ही छुपा है
मुझसे ज़्यादा तो इन्होंने मुझे पढ़ा है

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7 DEC 2020 AT 15:28

That enlightens the dark
Forget about the future
Pehle present ko sambhal
Situation jo bhi ho main datt ke khada
Maine haathon ki lakeeron se jag hai likha

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6 DEC 2020 AT 22:37

पीठ पीछे बोलते है बोलने दो बीचरों को
चर्चा को कुछ बचा नहीं वफ़ा तोलते है यारों
ज़माना बड़ा ख़राब है हर कोई ढूंढता अपना स्वार्थ है
संभल के चलना यारों जिसको अपना समझा वहीं असली सांप है

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5 DEC 2020 AT 17:12

लबों पे जो बात थी दिल में बसाए पड़ा हूं
कागज़ और कलम से मन लगाए पड़ा हूं
अब वक्त ही नहीं मिलता तेरे दीदार को
तेरे लिए ही तो कायनात को हासिल करने में लगा हूं।

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5 DEC 2020 AT 16:54

जो मैं सोच रहा हूँ वो मेरी किस्मत न हो
मैं जिस समंदर की तलाश में हूं शायद वो मेरी अंदर ही समाया हो

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