जिस तन को छुआ तुने,उस तन को छिपाऊं।
जिस मन को लागे नैना,वो किसको दिखाऊं।
दिल हूम हूम करे... घबराए।-
रौशनी की नदी सी बह रही है।
वो जो जलती लाशों की आग से निकली है।
दिखाई देने लगा है अब साफ साफ
कि कहां गलत थे हम।
सिलेंडर में भरी साँसे अब
मुँह चिढ़ा रही हैं
अॉक्सीजन दूर खड़ी
पकडं पकड़ाई खेल रही है।
हवा में ज़हर सा घुल गया है
ये ज़हर कुछ और नहीं
हमारे ही अंदर की वैमनस्यता
और द्वेष का ज़हर है।
अब और कितना तांडव देखोगे।
जागो उठो अब मन को साफ करो
प्रकृति से से क्षमां याचना कर
ईश्वर से मदद की गुहार करो।
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मैंने खर्च किया है खुद को
हर किसी के लिए।इस उम्मीद से कि..
मुझे भी वापस मिलेगा
वो वक्त जो मैंने खर्च किया है।
आज तनहा हूँ जीवन के अंधकार में अकेली खड़ी हूँ। व्यवहार लौटाने कोई नहीं आया।-
जाने क्यों समय के साथ सब बदलता सा गया।
मुट्ठी में रेत की मानिंद फिसलता सा गया।।
बदलते गये चेहरे तकदीर की तरह।
और सुख तकदीर से दूर सरकता सा गया।।-
यूं तो बहुत कुछ है कहने को मगर
हमने शब्दों को संभाल रक्खा है।
तूफान है और कश्ती टूटी है मगर
हमने माझी कमाल रक्खा है।
ना टूटने दूंगी खुद को
खुद से खुद का वादा है।
हे ईश्वर तुझ पर ही भरोसा
तूने खुश हर हाल रक्खा है।
प्रमिला किरण
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प्यार की जरुरत भी किसे है आजकल
हर इंसान शारिरिक लगाव को प्यार समझ रहा
शक्ल देखी सुंदर लगी तो प्यार हो गया
और कुछ दिनों के बाद जी भर गया तो नई तलाश
वाह रे आजकल का प्यार-
तुम जो चाहो तो भी न खोल सकोगे ये द्वार
दिल का जो बंद हो चुका हमेशा के लिए
एक पूरी उम्र गुजारी है तुम्हारे साथ
होम किया खुद को ताकी महक सको तुम
संपूर्ण न्यौछावर हुई हूं तुम पर
एक कतरा भी न जी सकी खुद के लिए
पर अब जब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं रही
अलविदा कहती हूं अंतर्मन के द्वार बंद कर
तुमसे विदा लेती हूं।
प्रमिला किरण
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मैं लिखती नहीं मैं तो उड़ेल देती हूं
अपने अंदर का सारा दर्द कागज़ पर-
दर्द है दिल का जो घावों की तपिश से
पिघल कर आंखों से बहता है।
न समझो तो पानी है जो झांको इनमें तो
खुद ही अपनी कहानी कहता है
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