Prakriti Shukla   (Swantika)
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Joined 20 September 2018


Joined 20 September 2018
15 MAR 2023 AT 21:18

हर रोज ख़ुद से इक वादा करके मुकर जाता हूँ मैं..
हर बार लगता है.. अब उससे बदल गया हूँ ..
पर नाकाम कोशिश-सा
फ़िर उसी में बदल जाता हूँ मैं ...!!

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13 APR 2022 AT 18:50

बेवजह ही फक्र था हमें अपने अशियाने पर..
छत बोझ-सा लगा... यूँ मिला सच...जब सिर उठा अशियाने औरों के देखे...
छाँव चने की थी मेरी...कद छोटा हो रहा था...
मैं मशगूल था सरफरस्ती में...कि उम्दा हो रहा था...

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4 APR 2022 AT 12:34

भावनाएँ शायद,फाईलों की तरह होती है..
हर नये कदम पर पुरानी होती...
सफर की तरह मेज-दर-मेज सरकती रहती है...नई जुड़ती रहती है...
और आखिर में कुछ फाईलें वक्त के साथ नष्ट हो जाती है.. जिनपर ध्यान नहीं जाता
और
बाकी कुछ गैरजरूरी रद्दी की तरह अपना बोझ बढ़ाती रहती है...परत-दर-परत,
किसी एक कोने पर जबरदस्ती अधिकार करके...!

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4 MAR 2022 AT 11:30

भावनाओं की कमी,
बहुत-सी समस्याओं से मुक्ति दिला देती है...।

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22 FEB 2022 AT 15:16

हाथ और फावड़े उनकी समझ में नहीं आते..।
जमीनें समतल नहीं है,वो मिट्टी से नाराज है..!

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25 JAN 2022 AT 13:10

कभी कभी हम ये धारणा बना लेते है कि हम किसी वस्तु या स्थिति के अभाव के कारण कार्यविशेष को नहीं कर पा रहे है पर वास्तविकता ये होती है कि अधिकांशतः इच्छित वस्तु, स्थिति या समय पाकर भी हम अपना काम पूरा नहीं कर पाते है...
वास्तव में किसी भौतिक अभाव के कारण कार्यसिद्धि में बाधा बहुत कम प्रतिशत ही रहती है..,
इसलिए जब भी ये महसूस हो कि हम कोई काम किसी अभाव के कारण से पूरा नहीं कर पा रहे है तो पहले स्वयं में निष्पक्षता से देखने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारा अभाव वास्तविक है या आभासी...!
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने सामर्थ्य के आलस्य को विवशता के आवरण में छिपाने का प्रयास कर आत्म सांत्वना के रूप में स्वयं को ही छल रहे है..!??

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3 MAR 2019 AT 9:51

'अपने' अनजाने में पीछे छूट जाते है और मंजिलें काफिलों को बढ़ा देती है,
जरा देर से समझा मैनें कि कुछ मुस्कुराहटें भी फासलों को बढ़ा देती है..!

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20 JAN 2022 AT 10:24

स्त्री की विवशता यह है कि
वह विवश नहीं...
भावुक है...!
आदिकाल से ही वह स्वीकारती रही काँटों को ये सोचकर...
कि वो बनाने वाले को ना चुभे...
और
उसकी भावुकता को दूसरे पक्ष ने सदैव
अपनी श्रेष्ठता की विजय समझी...
इसी परिधि पर क्रमशः...
तब से लेकर आज तक...
इन दो पक्षों के एकतरफा युद्ध में,
सत्ता का विजेता,
हमेशा समाज बना है..!

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5 DEC 2021 AT 10:36

इक और वादा मिला है हमें...साथ आने का..
देखते है,
कबतलक ये साथ... फिर से निभाया जायेगा...!

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29 NOV 2021 AT 12:53

मोह को तो छोड़ सकती हूँ
पर तुम्हीं कहो,
स्वयं को कैसे छोडूँ..
सहर्ष त्याग दूँ ये कोरी भावुकता
पर कर्तव्य मोह कैसे तज दूँ
इस आत्म दृष्टि को
इस मानवता को..
अपने धरातल से कैसे मुख मोडूँ...

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