भावनाएँ शायद,फाईलों की तरह होती है..
हर नये कदम पर पुरानी होती...
सफर की तरह मेज-दर-मेज सरकती रहती है...नई जुड़ती रहती है...
और आखिर में कुछ फाईलें वक्त के साथ नष्ट हो जाती है.. जिनपर ध्यान नहीं जाता
और
बाकी कुछ गैरजरूरी रद्दी की तरह अपना बोझ बढ़ाती रहती है...परत-दर-परत,
किसी एक कोने पर जबरदस्ती अधिकार करके...!
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