Prakash Singh   (✍️साहिल)
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इश्क़, उम्मीद और अभियांत्रिकी ✒️❣️
Joined 18 April 2018


इश्क़, उम्मीद और अभियांत्रिकी ✒️❣️
Joined 18 April 2018
28 MAR 2024 AT 21:58

मैं जब हर रंग में खुद को भिगो बेरंग पाता हूँ।
यकीनन कुछ तो है मुझमें, हक़ीकत में न मेरा है।
तुम्हारे बिन मेरे सब पर्व, सब उत्सव अधूरे हैं,
निशा ख़्वाबों में लिपटी है मगर सूना सवेरा है।।

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24 MAR 2024 AT 4:41

कड़ी इस धूप में, मैं इक सुकूँ की छाँव आया हूँ।
हैं दोनों हाथ खाली और नंगे पाँव आया हूँ।
बुझी हर ज़िन्दगी में रंग भरती है जहां होली;
सभी कुछ छोड़ करके दौड़ कर मैं गाँव आया हूँ।।

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26 JAN 2024 AT 11:44

है नमन तुमको कि अपने प्राण का बलिदान देकर।
हिन्द के रक्षक अमरता की कहानी हो गए हैं।
सब दिलों में भावना के वेग को स्थान देकर;
राष्ट्रहित में प्रज्ज्वलित पावन जवानी हो गए हैं।
🙏🏻🇮🇳❤️

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6 DEC 2023 AT 16:41

जिनको देखा नहीं तूने अभी तक,
उन लम्हों को भी तेरी नज़र देता हूँ।
कहीं बहती हवाओं में लफ्ज़ घोलकर;
हर मौसम को तेरी ख़बर देता हूँ।

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27 NOV 2023 AT 22:18

मंज़िलों की चाह ने राह-ए-थकन होने न दी।
और मंज़िल ने कहा, असली मज़ा रस्तों में था..!!

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14 NOV 2023 AT 18:29

।।बाल दिवस बिशेष।।
दुनिया के नृशंस तानाशाहों से इतर केवल माँ-पापा का डर, अपने ही द्वारा बनाए गए मिट्टी के घरों में काल्पनिक आवास, सीमित लोगों से प्रतिदिन मिलना और लड़ाई-झगड़े में बाल नोंचने जैसी घातक क्रियाओं के साथ खेल का स्थगित होना, न बीते हुए कल की याद और न ही आने वाले कल की चिन्ता।
सचमुच संसार का कोई भी प्रभुत्व इस बचपन से अधिक आनंददायक नहीं हो सकता।❣️

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4 OCT 2023 AT 23:40

ख़ामोशी हावी है लफ़्ज़ों पर...
कलम कागज़ से नाराज़ बहुत है..!!

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21 JUL 2023 AT 15:32

ख़ुदा ताउम्र इस कम्बख्त को बेसहारा रक्खे।
न कोई कदम दहलीज-ए-दिल पर दोबारा रक्खे।
रफ़्ता रफ़्ता अँधेरों से मोहब्बत होने लगी है।
मेरी आँखों से ओझल अपना सितारा रक्खे।
न डूबने की हिम्मत है न तैरने का हुनर बाकी है।
दूर मुझसे दरिया अब अपना किनारा रक्खे।
फ़रेबी भीड़-ओ-कारवां तुम्हें मुबारक़ हों 'साहिल'।
जो दरअसल हमारा हो, उसको हमारा रक्खे।।

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10 JUL 2023 AT 22:52

नदी, पर्वत, हवाओं में तेरा साया बहुत है।
यहाँ कुछ इस तरह मैंने तुम्हें पाया बहुत है..!!

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6 JUN 2023 AT 19:55

कभी तुमसे भी जो हमने छुपाया,
ज़माने को बताना पड़ रहा है।
ये कैसा दर्द है जो मूक होकर,
हमें हर रोज गाना पड़ रहा है।
मैं पुरखों की अमानत खो रहा हूँ,
गज़ब अफवाह है मेरा खजाना बढ़ रहा है।।

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