आज के खास दिन भी वो आए नहीं,
बिजली कड़की नहीं, घन भी छाए नहीं!
सूर्य की गरमी से ये धरा तप उठी,
राह ऑंखें बीछीं,वर्षा आई नहीं!
बस, स्मृति शेष है; हम नहाते हुए,
स्वप्न चलता रहा, नींद आयी नहीं!
ये शीतल पवन की लहर उठ चली,
फूल भी खिल उठे, महक आयी नहीं!
समय बहता गया, बिसरी बातें सभी,
शुष्क यारी में फिर जान आयी नहीं!
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संबंध के तराजू में
दो लोग उसके बाजू हैं,
एक में यदि कम है
तो दूसरे में काजू है;
एक को उठाने को
दूजा भी नीचे आता है,
ये अपूर्ण रिश्ता ही
तराजू का जादू है!!
और यही
तराजू का वजूद है!!-
मुझको अब तो ना मिल पाएंगे
मां के वो पदचिन्ह्,
अब तो केवल यादें ही
रह गई हैं गमग़ीन!!
आसपास उनका ही
मिल रहा आभास,
जब से उनकी बैग से
मिला है पल्लू खास!!-
अपनी कमाई से
सुख मिलता है;
खुशी मिले तो फिर क्या बात है!!
औलाद की कमाई से
खुशी मिलती है;
सुख मिले तो फिर क्या बात है!!
इसीलिए,
सुख बॉंटकर खुश रहो
और
खुशी बॉंटकर सुखी रहो!!!-
कुछ संदेश कहे नहीं जाते,
कुछ इतिहास पढ़े नहीं जाते,
जो आंखों में झांक लेते तो;
कुछ षड्यंत्र पता चल जाते!-
मां जो आज रोई है,
पड़ गई वह अकेली है;
बिना बाप के पाला जिसको,
बिछड़ी आज सहेली है।
किलकारी में हंसी थी जो,
आज बिदाई पे रोई है;
तिनका तिनका बिखर रही,
अब पुरानी ये हवेली है।
उंगली पकड़कर लाई जिसको,
मिट्टी से जो मैली थी;
बॉंह पकड़ बैठाई डोली,
बेटी अंजानों में अकेली है।
उठती डोली देखकर जो,
सहमी सी वो भोली है;
समझ नहीं पा रही वो,
संसार की ये कैसी पहेली है।
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तुम्हारा मेरे संग व्यवहार,
न सिखाया तुमको शिष्टाचार;
बेशक,
ये मेरी गलती थी!!?-
सूर्यास्त और महासागर;
किनारे का अलौकिक दृश्य,
और उससे केवल प्यार;
पर गहराई से लगता डर!!!!??-
खुशबू है या
गले लगने का निमंत्रण!!?
गुलाबी होंठ उसके
मंद रोशनी में चमकते हैं!!-