Prakash Mishra   (writer.prakash)
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वो पूछते हैं मेरा मज़हब हर दफा,
मेरा इंसान होना काफी नहीं क्या?
Joined 6 September 2017


वो पूछते हैं मेरा मज़हब हर दफा,
मेरा इंसान होना काफी नहीं क्या?
Joined 6 September 2017
17 NOV 2020 AT 13:58

मुझे जीवन में कभी
कुछ चाहना ही नहीं था,

सिवाय प्रेम के!

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2 AUG 2020 AT 10:47

दोस्ती सिमर नहीं,
सिफ़र होती है,
तभी तो दोस्तों को
दोस्ती की फिकर होती है।

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31 JUL 2020 AT 13:18

तुम्हारी खामियों को
मैं दूर कैसे करूं,
तुम्हें इश्क़ करने के लिए
मजबूर कैसे करूं।

चाहता मैं भी हूं कि
तुम्हें भुला ही दूं,
पर यही काम
मैं बदस्तूर कैसे करूं।

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27 JUL 2020 AT 17:24

मुझे कभी भी
फर्क नहीं पड़ा
तुम्हे यूं देखकर।

परन्तु मेरा अंतर्मन
चीखा हरबार,
तुम्हें किसी गैर के
साथ देखकर।

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20 JUN 2020 AT 13:09

प्रेम और कुरीतियां समाज में
शायद एक दूसरे की शत्रु थीं,

तभी तो जहां कुरीतियां हावी हैं,
वहां प्रेम का संकुचित प्रारूप मिलता है।
और जहां कुरीतियां अदृश्य हैं,
वहां प्रेम का विकराल व अद्भुत
स्वरूप देखने को मिलता है।

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3 JUN 2020 AT 19:31

मानव महान तो
बन रहा है किन्तु
मानवता के बिना
ही ।

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17 MAY 2020 AT 23:23

कई दिल तोड़े हैं उसने,
उसे मेरा भी तोड़ लेने दो।

कइयों का साथ छोड़ा है उसने,
उसे मेरा भी छोड़ लेने दो।

मेरे चेहरे पर हंसी उसे अच्छी नहीं लगती,
ये दर्द-ए-गम की आंधी उसे मोड़ लेने दो।

वो सोचती है मेरे बिना खुश रह लेगी,
उसे किसी और से नाता जोड़ लेने दो।

बहुत कटी हैं रातें सर्द उनकी बाहों में,
अब ये गम की चादर मुझे ओढ़ लेने दो।

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17 MAY 2020 AT 22:49

तुम्हारे बिछड़ने का कोई कायदा नहीं है,
ऐसे इश्क़ में अब कोई फायदा नहीं है,
तेरे जाने के बाद भी सांसें चलती रहें।
मेरे पास ऐसा कोई वायदा नहीं है।

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15 MAY 2020 AT 23:15

हल्की धूप,थोड़ी बारिश,
और आपकी राय चाहिए।

ऐसे मौसम में आपका साथ
और एक कप चाय चाहिए।

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14 MAY 2020 AT 23:56

दुनिया में नफरत तो इक ज़माने से है,
दिखता दुनिया को सिर्फ दिखाने से है।
दिलों में आज भी अमन और मोहब्बत है,
सारा फसाद इन नेताओं के बरगलाने से है।

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