मोर आखर के सोहबाती म
ये राज नीहे ,सुराज नीहे,
मै मरथंव मर - मरके माटी बर,
तभो ले मोर माटी के चिन्हार नी हे....-
मैं बहुत कुछ हूं लेकिन अभी कुछ भी नहीं
अपन छत्तीसगढ़ी भा... read more
मोर आखर के सोहबाती म,
ये राज नीहे ,सुराज नीहे,
मै मरथंव मर - मरके माटी बर,
तभो ले मोर माटी के चिन्हार नी हे...-
सब तमाशे है जीवन में ,
कोई तसल्ली हो जीवन से तो बताओ.....-
नारी के पास आंचल होती है इसलिए वह आंसु पोंछ लेती है ; पुरूषों को ज़िम्मेदारियां होती है इसलिए आंसु को ही छुपके से पी जाते हैं.....
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अधखिले मोगरे का फुल, ठिठकी रहती है कलियां ,
सच बताऊं तो तुम बिन ,सुनी लगती है वे! तंग गलियां....-
मैं काल गाल में समा कर ,
गीत वही गुनगुनाऊंगा ,
मर जाएगा शरीर मेरा,
फिर यह बात बतलाऊंगा ,
हिंदी भाषा नहीं भावना हो मेरी ,
मैं भी चल अक्षौहिणी सेनाओं में ,
नौसिखिया सिपाही ,
पराजय मिलेगी मगर सुयश कीर्ति की धवल स्याही ,
मां हिंदी की लाज बचाने , रणसमर में आहुत चढ़ाने ,
मैं एक पहरेदार , शब्द ढाल- कृपाण है मेरी
हिंदी भाषा नहीं भावना है मेरी...-
हाथ में कलावा यह रक्षा सूत्र नहीं है जन्मो जन्मो का प्रेम है
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उस जमीन का कोई आसमान नहीं होता जिसे लोग बेरोज़गार कहते हैं..
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