वो क्या खूब कहा है,वो ना तेरी है न वो मेरी है|न ही इसकी है न ही उसकी है, वो तोह बस इस बेकाबू वक्त की है,
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फ़िराक़ ए यार में सांसों को रोक के रखते हैं ||. हर एक लम्हा गुजराती क़ज़ा में जीते हैं ||
खुमार ए गम है महकती फ़िज़ा में जीते हैं ||
तेरे ख्याल की आब ओ हवा में जीते हैं ||
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एक रात चली जा रहीं है,मन की आस बुझी जा रही है|जागते अरमान अब सीथिल होते जा रहै है, और हम मुकदर सा उसे जिए जा रहै है|कभी ये कभी वो करके बस समय का घूट पिए जा रहै है, और मीठा मीठा सा ज़हर लिए जा रहें है|रातों की नींद भी अब उड़ती जा रहीं है, और मन की बैचेनी बढ़ती जा रही है|बस अब कोई बहाना तोह मिले इन यादों को मिटाने का, उन यादों को दफन करने का तरीका तलाशते जा रहे हैं|
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ख्वाब और खयाल की दुनिया क्यों है इतनी ओझल, क्यों करे है ये मन ही मन सब ओझल|अंगियारे सा क्यों हैं ये जग सारा, जो करे मन को ओझल सारा|ओझल मन मांगे है प्रीत से रीत, पर जो किया प्रीत तोह मिला न उसको रीत|क्यों हो गया हु अब मै ढीठ सा, ना रोके मन ना सोचे मन|बस ओझल से ख्वाब मे डूबे है मन|
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तेरे बेवफाई और गुरुर सब को पीछे छोड़ जाएंगे, जिस महफिल में तू उसमे हम फिर आएंगे|रहेगा तू अपनों के साथ, उस महफिल में भी अंजान सा बनकर हम भी निकल जाएंगे|जिस वक्त से गुजरे है उसका एहसास तुम्है भी करवायगे|बात जब होगी उस चार पहर की, हम वहां से भी मुकर जाएंगे|जरा मौका तो दे वक्त, तेरी वफाई से बेवफाई का सफर कुछ न करके भी सबको बताएंगे|
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अब क्या बोलूं तुमको, जब जुबान होते हुए तुमने मस्तिष्क को शून्य कर दिया|हस्ते मुस्कुराते चहरे को पल भर में गमगीन कर दिया|जो कुछ सोचे थे अपने भविष्य के सपने, सबको जो तूने मत्तमैला कर दिया|माना वो चार पहर की मुलाकात थी, पर तुमने केवल भौतिक सुख की चाह में उस चार पहर की मुलाकात को भी सौ साल का दर्द दे दिया|कभी न भूलने वाला दर्द दे दिया|ये मेरे काल का काला अध्याय तुझसे शुरू होना था तोह तूझसे ही सही|जाना है तो जा में नहीं रोकूगा तुझै, पर याद रखना आज से एक नया अध्याय लिखूंगा|वादा करता हु नहीं भूलूंगा ये दिन,क्योंकि अब सुरु होगा मेरा अध्याय|और आएगा वो दिन जब न चाहते हुए भी सोचेंगे कि में सही था और तू गलत थी|
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आज कही मन के झरोखे में बंद सी हो, गई है वो स्कूल के कुछ हसीन पल|आज भी याद आते है वो क्षण, चाहें वो टीचरों का उपनाम रखना हो, या उनकी नकल उतारना हो|वो बिना बात के रूठना, और पल भर में मान जाना|यही कुछ पल है जो आज निरसता में उन पलों की याद भर से उत्साह का संचार कर देते हैं|आभास है हमे ना आयेगे वो पल, पर यादों के गुलदस्ते में कुछ विशेष भाग आज भी समेटे हुए है वो पल|
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नैनो मे चमक या उसके आसू उगते या अस्त होती सपनो का निर्मम प्रतीक है|कुछ सपनो की आस में शांत हो गए, तो कुछ राह में मंजिल से दूर हो गए|तोह कुछ उन्हें पाने के कोशिश में चमक से गए|या उन्हें पाने के होड़ में खुद की चमक से दूर हों चले|अब तो बस नैनो के बाढ़ का स्वपन ही मोह को भग कर देता है|क्या नैनो का स्वपन,और क्या उनका उद्विग्नता पन, सब समय का छलावा सा प्रतीत होता हैं|ना कुछ कहना, और न ही कुछ बोलना|बस किसे के बाहों की सैया,पर भीष्म सा अचेतन सा लगता है|
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ये मोह रूपी रद्दी से धागे,लगाव रूपी चिंता को क्यो करते है जीवित|न जाने क्यों उघरते है,पुराने पन्नों को जिसने सदा जन्म दिया असंतोष रुपी उद्विग्न मन|सोचा था कभी न पलटेंगे वो पल, पर न जानें क्यों पलट दिए फिर से वो पल|फिर वही खुद के चित का रूठना मनाना, और यादों का आना जाना| और वफाई का बेवफाई तक का सफर आना जाना| क्यों न हो फिर से व्याकुल मन, क्योंकि आया है फ़िर से वो बेवफाई वाला पल|
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चांद तू क्यों रूठा है, लगता है तू भी कही मेरी तरहै टूटा है|लगता है तू भी कही रूठ कर चुपचाप सा सिससक सा टूट रहा है|क्यों आस में है तू एक चांदनी की, जबकि तेरी चांदनी तोह तेरी शीतलता है|बस चला चल अपनी शीतलता में मंद मंद सा, और तोड़ता जा सारी कटुता|
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