Prakash Jha   (Prakash jha)
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Joined 28 April 2019


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Joined 28 April 2019
21 MAR AT 19:32

"माना कि तेरी तरह खूबसूरत नहीं हूँ मैं
ऐसा भी नहीं कि तेरी जुरूरत नहीं हूँ मैं
ख़ाक हूँ, बंज़र हूँ, पत्थर दिल हूँ मैं
ज़िंदा हूँ अपनी शर्त पे बेग़ैरत नहीं हूँ मैं,,

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31 DEC 2023 AT 16:09

आदमी है कि हर घड़ी हर पल बदलता है
एक वर्ष बदलने में यहाँ एक वर्ष लगता है।

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29 DEC 2023 AT 9:11

मैं गिरा और फिर संभल कर खड़ा हो गया
तुम हँसे और नज़रो से गिरते चले गए।

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20 DEC 2023 AT 9:03

तुम हँस रहे हो मुझ पर चलो, कोई बात नहीं.
मेरे बराबर के हँसे मुझ पर, ये मुझे बर्दाश्त नहीं।

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11 DEC 2023 AT 19:17

कुछ तो बात थी जो मैं जी गया
दर्द-ए-दिल का ज़हर मैं पी गया

खुश्क आँखे जो नम हो गई थी मेरी
वस्ल की याद आई तो मैं जी गया

एक शब मुलाक़ात की बात थी
आरज़ू मरने की थी, मैं जी गया

गज़ब की उसकी ये तदबीर थी
ज़ख्म दिल पर लिए मैं जी गया

बड़े शौक से की वो रुसवाई मेरी
उस'से जुदा हो कर भी मैं जी गया

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9 DEC 2023 AT 12:13

क्या प्यार कहने से या सुनने से ज़ाहिर होता है.
मुझे तो बस अपनी जिम्मेदारियों पे ए'तिबार है।

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4 DEC 2023 AT 13:22

हर किसी को यही ग़म है
हमें मिला क्यों इतना कम है।
~prakash jha

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13 NOV 2023 AT 11:40

🪔
जले तो हम भी थे दीयों की तरह
जला दिल मेरा, मेरे अपनों के बगैर।

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17 OCT 2023 AT 17:02

"सबकी नज़रो से गिर रहें हैं
हम उन्हें अपना जो समझ रहें हैं"

~Prakash jha

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11 OCT 2023 AT 8:32

सहरा में भी सहर होता है..
यहाँ हर किसी की ज़बाँ में ज़हर होता है।

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