Prakash Deep   (प्रकाश दीप(निःशब्द ))
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9458921010
Joined 18 May 2021


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27 DEC 2021 AT 14:10

तलाशते रहे उनको, वो और दूर जाते रहे
दिलों के जज्बातों को हम हमेशा छिपाते रहे

जाना तो था सबको एक ना एक दिन लेकिन
एक दिन उसके साथ जी लें ये हम मनाते रहे!

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25 DEC 2021 AT 14:24

उन्होंने कहाँ बोलते बहुत हो अब क्या बरस जाओगे...

हमने कहाँ कि अगर हो गये खामोश तो तुम तरस जाओगे!

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5 JUN 2021 AT 7:56

कुछ दूर ही गहे थे उनसे, वो परेशान हो बैठे
लौट के क्या आये हम
वो ऐसे गले लगे की सबको हैरान कर बैठे !!

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21 DEC 2021 AT 16:24

नदी के पास मैं घर है,
गमो को पाला है,
खबर मिली है की सैलाब आने वाला है,

कोई बला भी मेरे पास आ नहीं सकती..
क्यूंकि मेरी माँ ने बलाओं मैं मुझको पाला है!!!

Cp. 🙏

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21 DEC 2021 AT 14:46

उसकी क्या तारीफ़ करू, ये सब सुनने की आदत नहीं उसे,
जानता हुँ याद बहुत करता होगा, लेकिन जताने की आदत नहीं उसे

जन्मदिन उसका हम भूले से भी नहीं भुला करते,
इसी बहाने बिताये पुराने दिन याद कर लिया है करते..

इतराता बहुत है लेकिन दिल मैं प्यार रखता है,.
निगाहों मैं अपनी वो मुझको बसा के रखता है...

उसका साथ होना ही एक खूबसूरत अहसास है,
मेरे भाई तू मेरे लिए बहुत बहुत ज्यादा ख़ास है...


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19 DEC 2021 AT 21:26

दिल की नादान लगती है ,थोड़ा शैतान लगती है,
कभी कभी वो सबको अपनी बातों से हैरान करती है...

हमेशा उसको सबकी खुशी मैं खुश पाया...
लेकिन आजतलक उसको मैं समझ ना पाया...

कभी कभी गलतियां भी करती है...
फिर चिट्ठी लिख कर सॉरी बोला करती है...

हमसे भी नाराज नहीं हुआ जाता...
उसका उदास चेहरा ओर नहीं देखा जाता..

फिर समझा कर गले लगा लिया करते है..
फिर ओर क्या..
नई नई डिमांड उन लोगों की सुना करते है..

बस सबको खुश देखना चाहता हुँ ...
हमेशा ऐसा ही रिश्ता बनाएं रखना चाहता हुँ!

Dedicated to Pinku...

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19 DEC 2021 AT 15:40

हमें आज भी सब याद रहता है...
हर खुशी हर जख्म हर लम्हा याद रहता है...

फिर भी भुल जाने का दिखावा किया करते है...
हम अकेले में अकसर रो लिया करते है!


सब कुछ समेटे बैठे है छोटी सी झोली लिए..
कैसे सब बातें दफ़न करदूँ हमेशा के लिए..

अब बर्दाश्त और नहीं कर सकता मैं...
मुझे भी ख़त्म करदे कोई हमेशा के लिए!

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16 DEC 2021 AT 16:48

तोह भी नहीं देख सकता उसको...

क्यूंकि

परदे में रहना हमेशा उसको मैंने ही तोह समझाया था!

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16 DEC 2021 AT 16:45

जिंदगी की धुंध में खोता रहा मैं ...
और बढ़ते बोझ को ढोता रहा मैं ...

पूछने वाला कोई अपना नहीं था...
रात को ही ओढ़कर सोता रहा मैं

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4 NOV 2021 AT 16:25

हम,

दिवाली का इंतज़ार साल भर किया करते थे...
पटाखों की दुकान रोज जाया करते थे...

ख़ुशी के मारे फूले ना समाया करते थे
दोस्तों में पटाखों के दाम बताया फिरते थे

आज सूना सा आँगन लगता है
सब कुछ अँधेरे में लगता है

लाख दिये जलाये मैंने फिर भी...
खुशियों का कमरा काला सा लगता है

कोई लौटा दे वो दिन जो अपना समझता है
होली दीवाली सब फीका सा लगता है!



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