कभी चोराहा हुआ तो फीर आखों से तीर खिचेगे ।
फ़िलहाल अभी मैं बिच इम्तहान मे हू।।।-
हमारे बिछ कोई पर्दा नही हे (pal)
वो कौन सा शहर था जो मुझे पटरी से उतार गया ।
अब ये कोनसा गाँव हे जो मेरे आने का इन्तज़ार कर रहा हे।।-
एक रोज हम फिर मिलेगे । कहा , क्यू ,केसे, ओर कब ?
एक रोज हम फिर मिलेगे । शायद शहर की तन्हाई या गाँव की खुशबू होगी ?
एक रोज हम फिर मिलेगे । शायद तूम माँ होगी या मे पिता ?
एक रोज हम फिर मिलेगे । शायद तुम्हे काम की जल्दी होगी या मुझे सुकून की तलाश ?
एक रोज हम फिर मिलेगे । कहा ,क्यू ,कब ओर केसे मे नही जानता पर एक रोज हम फिर मिलेगे। शायद झूर्रिया हमारे चेहरे पर घर बसा चुकी होगी लेकिन एक रोज हम फिर मिलेगे ।
हमारे अपने घर होगे अपनी -अपनी दुनिया होगी हम मशगूल होगे उसमे लेकिन एक रोज हम फिर मिलेगे ।
कसमे, वादे , प्यार वफा , पर ठहाके होगे , किसी बगीचे मे ये सारे आलम होगे । मानो तूम हम एक रोज फिर मिलेगे।
हे मुमकिन की पल दो पल की मुलाकत होगी , पल हम एक रोज फिर मिलेगे ।।-
गमे आशिकी मे हम मजबूर थे । तूम उस ओर थे तो हम इस ओर थे ।।
हम ने चाहा तुम्हे दिवाली के दिपक सा । कम्बखत तूम उसी दिवाली की अमावस थे ।-
मोहब्बत ओर मोहब्बत मे सावन।
बिल्कुल वेसा जेसे, जुदाई ओर जुदाई मे पतझड ।
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पत्थर पत्थर तोडने वाले माजी का गीत गाने वाले।
चप्पन इन्च का सिंना ले कर रेलियो मे जाने वाले।
धेनु को मोहरा बनाने वाले, संघ गीत को गाने वाले ।।
लम्म्पि पर क्यू मौन साधे हे, भारत को जोडने वाले ?
शाखा मे सिखाने वाले, गाय को माँ बताने वाले ।
गौ शाला पर लड़ने वाले संसद मे गीत गाने वाले।।
लम्म्पि पर क्यू मौन साधे हे भारत को जोडने वाले?
रेवड़ी मे जीने वाले , बिजली-पानी देने वाले ।
पंजाबी लस्सी के बाद गिर के दुध को पिने वाले ।।
आम आदमी की चादर ऑडे रिक्सा चालक से मिलने वाले
लम्म्पि पर क्यू मौन साधे हे भारत को जोडने वाले?
धर्म धरा ओर धनु के रखवाले उत्तर प्रदेश के प्यारे । योगी से जाने जाने वाले विलास से दुर रेहने वाले क्यू चुप हे आखिर बुलडोजर वाले ?
कोविड़ को जुकाने वाले खुद को जादुगर बताने वाले । सत्ता के भुके,दिल्ली तक जुलूसो मे जाने वाले । आखिर क्यू लम्म्पि पर मौन साधे चल पडे हे भारत को जोडने वाले?
भारत बन्द कराने वाले, तकनीक को साधन बनाने वाले ।
आखिर क्यू लम्म्पि पर मौन साधे चल रहे हे भारत मे रहने वाले ?
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निगाहे नशे मे हो तो , हर ख्वाब हसीन लगता हे।
चान्दनी रात हो तो, कोन मोहब्बत से दुर रह्ता हे?
धुप खिल्ती हे तो, चेहरे यकीनन नज़र आते ।
पहली मूलाकात मे तो, मोहरम के रोजे भी नूर लगते हे
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तू बहता झरना,मैं झील का जल प्रिये ।
तू कटी-फटी पहाडी, मैं हिमालय सा हिमगिर प्रिये-