बहुत कुछ बोलना नहीं आता कभी चुप रहूं तो खामोशी को समझना कमजोर नहीं हूं, पर कभी अकेली रह जाऊं तो बस सीने से लगा लेना प्यार की बातें नहीं आती पर कभी डाटू तो फिक्र में ओछल प्यार देखना
उंच-नीच से परे मजाल आँख में भरे मैं लड़ रहा हूँ रात से मशाल हाथ में लिए न सूर्य मेरे साथ है तो क्या नयी ये बात है वो शाम होता ढल गया वो रात से था डर गया मैं जुगनुओं का यार हूँ मैं शून्य पे सवार हूँ