दूसरों का दुख बांटना हो तो,
दुनिया को दिलासा दे आती थी,
पर काश कि खुद को भी समझा पाती
॓॓मैं हूं तो तुम हो, तुमसे नहीं हूं मैं!॑
तुममें कहीं धुंधलाया सा मेरा वजूद, अब वापस से अपना बनाने की चाह उठी है,
काश कि खुद को बता पाऊं,
॓इस लौ को बुझने मत देना।॔
तुम्हें अपना चंदा बनाके, खुद तारों-सी तुम्हारे इर्द गिर्द घूमते-घूमते,
भूल ही गई थी खुद को ये समझा पाना कि,
॓॓एक तारे के माप में सौ चांद समाए हुए हैं!॔
तुमने जो मांगा मुझसे, और मैंने जो चाहा तुमसे,
वो कभी एक-सा न हो पाया,
काश कि खुद को समझा पाती मैं,
॓हर राही का हम-राही नहीं होता!॔
अनजाने में ही सही, मेरे दर्द का सबब बन बैठे तुम
भूल गई थी खुद को बताना,
॓जो आज नासूर है, वो कभी छोटी सी ख़रोंच हुआ करता था।॔
जरूरी नहीं तुम्हारा साथ मुझे हमेशा सुहाए,
भूल ही गई थी अपने बारे में कि,
॓कुछ रास्तों पर अकेले बेफ़िक्र चलना, मुझे कितना पसंद था! ॔
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