"स्मृतियां"
क्या सूरज, चाँद , सितारों , धरा , गगन, जलधारों के पास भी होगी स्मृतियाँ ?
क्या संजोई होंगी उन्होंने भी कुछ यादें ? , स्मृतियों में डूबकर बिताये होंगे कुछ क्षण ?
या वे केवल साक्षी है ?
जीवन की गाथा के ,
मृत्यु की मर्यादा के ।
क्या सूरज को याद होगी कर्ण की पीड़ा ?
क्या तारों को याद होगी कृष्ण की क्रीड़ा ?
क्या चाँद को याद होगा बुद्ध का ज्ञान ?
क्या धरा को याद होगा सीता का सम्मान ?
क्या समुंद्र को याद होगी रावण की व्याधि ?
क्या अग्नि को याद होगी सती की समाधि ?
क्या निर्जीव समझूँ उन्हें , या कुछ सजीवता है उनके भीतर ?
क्या उन्हें आदेश मिला है बस मौन धरे , निरंतर कर्तव्य की ओर अग्रसर ?
क्या कोई अंतर नहीं बचा है उनकी जीवन देती स्थिरता में और भाव रहित निष्ठुरता में ?
क्या उन्हें स्मृतियों की समृद्धि प्राप्त है , किंतु अभिव्यक्ति का आशीर्वाद नहीं ?
क्या केवल मनुष्य ही सम्मानित है स्मृतियों के वरदान से , अभिव्यक्ति के अभिमान से ?
प्रज्ञा "प्रांजली"
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