Pragya Pranjali   (प्रज्ञा "प्रांजली")
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Joined 12 February 2021


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6 NOV 2022 AT 15:35

" सदियों पुरानी प्रेम की राहें
लीक की खाईयाँ खींच चुकी हैं
प्रेमी समा जाते है इनमें
क्योंकि
बड़े हादसे
पुरानी सड़को पर
होते है। "

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6 OCT 2022 AT 10:23

जो हम दोनों में क़रार है
वहीं तो प्यार है...

( अनुशीर्षक में जारी...

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12 DEC 2021 AT 9:12

" खिड़की के पास "

दोहरी ज़िन्दगी जीती है खिड़कियाँ।
टिकी रहती है एक जगह
भीतर से आस का धोखा बनकर
बाहर से ताक झाँक का मौका बनकर
प्रसन्नता में खोल दी जाती
पीड़ा में बंद की जाती ।

( आगे अनुशीर्षक में ....

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13 OCT 2021 AT 21:04

" उलझन "
( आगे अनुशीर्षक में )

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28 SEP 2021 AT 17:14

"स्मृतियां"

क्या सूरज, चाँद , सितारों , धरा , गगन, जलधारों के पास भी होगी स्मृतियाँ ?
क्या संजोई होंगी उन्होंने भी कुछ यादें ? , स्मृतियों में डूबकर बिताये होंगे कुछ क्षण ?
या वे केवल साक्षी है ?
जीवन की गाथा के ,
मृत्यु की मर्यादा के ।

क्या सूरज को याद होगी कर्ण की पीड़ा ?
क्या तारों को याद होगी कृष्ण की क्रीड़ा ?
क्या चाँद को याद होगा बुद्ध का ज्ञान ?
क्या धरा को याद होगा सीता का सम्मान ?
क्या समुंद्र को याद होगी रावण की व्याधि ?
क्या अग्नि को याद होगी सती की समाधि ?

क्या निर्जीव समझूँ उन्हें , या कुछ सजीवता है उनके भीतर ?
क्या उन्हें आदेश मिला है बस मौन धरे , निरंतर कर्तव्य की ओर अग्रसर ?
क्या कोई अंतर नहीं बचा है उनकी जीवन देती स्थिरता में और भाव रहित निष्ठुरता में ?
क्या उन्हें स्मृतियों की समृद्धि प्राप्त है , किंतु अभिव्यक्ति का आशीर्वाद नहीं ?
क्या केवल मनुष्य ही सम्मानित है स्मृतियों के वरदान से , अभिव्यक्ति के अभिमान से ?

प्रज्ञा "प्रांजली"


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26 SEP 2021 AT 12:18

" मधुमास "

मैं मिलिंद , तुम मंजरी
मैं अधीर नर , तुम धीर नारी
पिपासा , तृप्ति को व्याकुल
उमंग , प्रखर - नवलकारी
मधुमास की आगमन बेला
प्रीत बने , सृजनकारी
प्रेम , प्रदीप्त प्रति शिरा में
अब प्रणय की बारी ।

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20 JUN 2021 AT 21:40

आबादी

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13 JUN 2021 AT 20:33

ये जो कुछ नहीं लिखते
रोज लिखते है ।

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28 MAY 2021 AT 17:11

ख़्वाब बिना जीना क्या
दर्द बिना पीना क्या
ज़ज्बात इश्क़ के मर जाये
ऐसे होंठ सीना क्या ।

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26 MAY 2021 AT 19:06

इबादत

दर्द मेरे दिल का
आँखों मे उतर आया है ।

इबादत में झुका वो सिर
जो मगरू उठा आया है ।

मैं ज़िन्दगी को मौज का फ़लसफ़ा समझता ही रहा
मौत रूबरू है तो खुदा का खौफ़ नज़र आया है ।

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