Pragya Khobragade   (Pragya)
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Joined 2 December 2020


Joined 2 December 2020
25 SEP 2022 AT 0:18

मैनें ढूंढा है, तुम्हें तुम्हारी ही कविताओं में ऐसे

जैसे, मानों तुम्हारे लिखे हर शब्द में
तुम्हारी कोई तस्वीर हों

जैसे, तुम फिर मिल जाओ मुझे
अपनी ही किसी कविता में

जैसे, खो कर तुम्हारी कविताओं में
भूला दूं मैं ज़हान को!



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24 SEP 2022 AT 23:57

बढ़ती हुई समझ मनुष्य
सें उसकी मासूमियत छीन लेती है!

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23 SEP 2022 AT 9:57

कभी-कभी सब कुछ जान लेना
जीवन को निराशा की ओर ले जाता है!

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21 SEP 2022 AT 23:09

हमारे बीच ना अब भी कुछ तो है,जो बाकी है
वो जो कभी खत्म नहीं हुआ,जैसे......

कुछ अनकही बाते
कुछ अधूरे अल्फाज़
कुछ जज़्बात जो कभी
बयां ना पाये
एक बेनाम रिश्ता
और ये रात का संन्नटा
जो अब चीखने लगा है!

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21 SEP 2022 AT 0:19

उनसे मिल कर जाना मैंने कि.....
कैसे कोई अजनबी सबसे
खास हो जाता है!

कैसे किसी की बातें नींदें
छीन लेती है!

कैसे कुछ जज़्बातो पर
कोई पाबन्दिया नहीं होती!

कैसे कुछ किस्से रातों से
लम्बे हो जाते हैं!


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20 SEP 2022 AT 21:05

मैंने जाना हैं
एक वक्त बाद
हमारे अन्दर जीने की
इच्छा घटती जाती है
और उदासी स्तर
बढ़ता चला जाता है!

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19 SEP 2022 AT 19:28

कितना आसान होता है ना
शारीरिक पीड़ा को सांझा करना
क्योंकि वह सबको नजर आती है
परंतु कितना कठिन है,मानसिक व्यथा को
सांझा करना क्योंकि उसे कोई नहीं देख पाता ....
हम चीखना चाहते हैं पर
हमारे शब्द हमारा साथ नहीं देते
इसलिए हम इन्हें होंठों में कैद कर
बस मौन रहना ही ठीक समझते हैं!

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17 SEP 2022 AT 10:00

कभी-कभी ना बेफिक्र होकर
बेपरवाह रास्तों पर चलते रहना....
ज़िंदगी को एक ख़ूबसूरत मकाम
पर ले आता है!

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17 SEP 2022 AT 8:46

कितना कठिन है,उस शख्स का इंतजार करना
जिसका लौटना....
अब मात्र मेरी कल्पना बन कर रह गया हो!

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21 JUN 2022 AT 23:15

इक रोज़
जब मैं जीन्दगी से हार कर
तुम्हारे पास आऊंगी
तुम बिना कोई सवाल किए
बस मुझे गले लगा लेना

हम भुला देंगे
वो सारे गिले सिकवे
जो हमें एक दुसरे से है

और फिर कहीं दूर
एक अलग दुनिया बसायेगे.........


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