कितना आसान होता है ना शारीरिक पीड़ा को सांझा करना क्योंकि वह सबको नजर आती है परंतु कितना कठिन है,मानसिक व्यथा को सांझा करना क्योंकि उसे कोई नहीं देख पाता .... हम चीखना चाहते हैं पर हमारे शब्द हमारा साथ नहीं देते इसलिए हम इन्हें होंठों में कैद कर बस मौन रहना ही ठीक समझते हैं!