Pragati Dwivedi  
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Joined 21 May 2019


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Joined 21 May 2019
11 OCT 2023 AT 11:10

पता सबको सब है,
मग़र
अनजान बनने की अच्छी कला है उनमें..!

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21 JAN 2023 AT 23:32

फिर आवाज कहां पहुंच पाती है,
जब मेरे कहने और तुम्हारे समझने के बीच दीवार खङी हो जाती है।

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29 SEP 2022 AT 15:41

दिल पे लगी मोह की तिजोरी खोल दो;
उस बेख़बर की आहट कब तक तलाशोगे,
अब उसे भी अपने फ़ैसले का लुत्फ उठाने दो..!

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6 JUN 2022 AT 16:25

मेेरी हैसियत नहीं नज़रें मिलाने की,
और वो मुझे पलकों पे बैठा के रखते हैं;
कुछ इम्तेहान हैं मेरे हिस्से में ,
जिन्हे वो अपने हाथों में सजा के रखते हैं;
मेरी हर जरूरतों को,
अपनी जिम्मेदारी बना कर चलते हैं;
मेरी हर तकलीफों में,
खुद मरहम बन कर लगते हैं;
मेरी छोटी सी नादानियों पर,
हर दफा इत्तिला करते हैं;
मेरी अनकही बातों का,
बखूबी इल्मियत रखते हैं;
फिलहाल कुछ नहीं मेरे पास देने को,
और वो हमेशा मुझे तोहफों से भर देते हैं।

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17 MAY 2022 AT 15:05

तस्वीर में देखा है
अभी दीदार उनका बाकी है;
कुछ ही बातें सुनी हैं उनकी
अभी जानना पूरा बाकी है;
कुछ पल बुने हैं उनके लिए
बिताना अभी बाकी है;
कुछ सपने संजोये हैं उनकी ख़ातिर
करना साकार बाकी है;
मात्र एक किरदार बनी हूँ
अभी बनना उनकी ज़िंदगी बाकी है।

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27 APR 2022 AT 22:21

बस गए हैं आंखों में एक सपने की तरह ;
रोज सँवारती हूं गैलरी में कोई गहने की तरह ;
अब तो दिल भी महसूस करता है आपको किसी अपने की तरह..!

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17 MAR 2022 AT 20:53

ऐसी यादों को
जिनका हमारे आज पर कोई हक़ नहीं,
सहेज लेना चाहिए
सभी हसीन लम्हों को
जिन्हें आज रखने में कोई शक़ नहीं।

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28 FEB 2022 AT 10:13

कैद हैं ज़िद में
अभी छोड़े नहीं सपने मैंने,
झुकी हूं मज़बूरी में
ताकि खुश रहें अपने मेरे।

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31 AUG 2021 AT 20:47

ये जुनूनी से इश्क़ का परवान चढ़ने लगा है,
लगता है मोहब्बत का मकां बनने लगा है,
अब क्या फ़र्क़ पड़ेगा तोहफ़ा-e-तौहीन से
परिश्रम की आग में ये ज़िस्म तपने लगा है,
कोई नहीं यहां मरहम बनने वाला
अब ख़ुदा की रहमत पर विश्वास बढ़ने लगा है,
हसरत नहीं मुझे किसी भी हुस्न की
अब कलम ही मेरा अलंकरण बनने लगा है।

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15 AUG 2021 AT 23:27

चलो न ज़ख्म सुखा लेते हैं फूंक कर,
सारे फासले मिटा देते हैं गुस्सा थूंक कर..

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