पता सबको सब है,
मग़र
अनजान बनने की अच्छी कला है उनमें..!-
उलझे हुए मिज़ाज़ की
मेरी गुमनामी ही पहचान है
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फिर आवाज कहां पहुंच पाती है,
जब मेरे कहने और तुम्हारे समझने के बीच दीवार खङी हो जाती है।-
दिल पे लगी मोह की तिजोरी खोल दो;
उस बेख़बर की आहट कब तक तलाशोगे,
अब उसे भी अपने फ़ैसले का लुत्फ उठाने दो..!-
मेेरी हैसियत नहीं नज़रें मिलाने की,
और वो मुझे पलकों पे बैठा के रखते हैं;
कुछ इम्तेहान हैं मेरे हिस्से में ,
जिन्हे वो अपने हाथों में सजा के रखते हैं;
मेरी हर जरूरतों को,
अपनी जिम्मेदारी बना कर चलते हैं;
मेरी हर तकलीफों में,
खुद मरहम बन कर लगते हैं;
मेरी छोटी सी नादानियों पर,
हर दफा इत्तिला करते हैं;
मेरी अनकही बातों का,
बखूबी इल्मियत रखते हैं;
फिलहाल कुछ नहीं मेरे पास देने को,
और वो हमेशा मुझे तोहफों से भर देते हैं।-
तस्वीर में देखा है
अभी दीदार उनका बाकी है;
कुछ ही बातें सुनी हैं उनकी
अभी जानना पूरा बाकी है;
कुछ पल बुने हैं उनके लिए
बिताना अभी बाकी है;
कुछ सपने संजोये हैं उनकी ख़ातिर
करना साकार बाकी है;
मात्र एक किरदार बनी हूँ
अभी बनना उनकी ज़िंदगी बाकी है।-
बस गए हैं आंखों में एक सपने की तरह ;
रोज सँवारती हूं गैलरी में कोई गहने की तरह ;
अब तो दिल भी महसूस करता है आपको किसी अपने की तरह..!-
ऐसी यादों को
जिनका हमारे आज पर कोई हक़ नहीं,
सहेज लेना चाहिए
सभी हसीन लम्हों को
जिन्हें आज रखने में कोई शक़ नहीं।-
कैद हैं ज़िद में
अभी छोड़े नहीं सपने मैंने,
झुकी हूं मज़बूरी में
ताकि खुश रहें अपने मेरे।-
ये जुनूनी से इश्क़ का परवान चढ़ने लगा है,
लगता है मोहब्बत का मकां बनने लगा है,
अब क्या फ़र्क़ पड़ेगा तोहफ़ा-e-तौहीन से
परिश्रम की आग में ये ज़िस्म तपने लगा है,
कोई नहीं यहां मरहम बनने वाला
अब ख़ुदा की रहमत पर विश्वास बढ़ने लगा है,
हसरत नहीं मुझे किसी भी हुस्न की
अब कलम ही मेरा अलंकरण बनने लगा है।-
चलो न ज़ख्म सुखा लेते हैं फूंक कर,
सारे फासले मिटा देते हैं गुस्सा थूंक कर..-