prafull bhatt   (प्रफुल्ल भट्ट ✍️)
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Joined 1 August 2018


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12 JUN 2020 AT 0:19

अब हम नहीं हैं ,
बरिशें हैं ! बस मौसम नहीं हैं ।
ज़ख्म ही ज़ख्म हैं जिस्म से रुह तक
तसल्लियां बहुत हैं! बस मरहम नहीं हैं।

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21 AUG 2021 AT 22:42

मैं जी भर जिया ,
मैं अब क्या जियूँ ।
मैंने सबकुछ किया ,
मैं अब क्या कहूँ ।
तन समर्पित किया ,
मन समर्पित करूँ ।
भाल पर टीका लगाने,
राम चलकर आ रहे ।
माथ वंदन करूँ ,
साथ उनके चलूं।

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28 JUL 2020 AT 17:14

गाथाएं प्रेम की,
सदियों से गाई जाती हैं।
आज भी हर घर में,
तुसली लगाई जाती है।

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27 JUL 2020 AT 0:03

मुझे चाहना है तुम्हे ऐसे ,
जैसे बच्चा चाहता है,
बारिश में नाव चलाना ।
जैसे कैदी चाहता है ,
कैद से बाहर आना ।
जैसे राही चाहता है ,
मंज़िल को पाना ।
जैसे साहिल चाहता है,
लहरों का पास आना।
जैसे सावन चाहता है,
बादलों का घिर आना ।
जैसे यौवन चाहता है,
प्रेमी का मिल जाना ।
जैसे घर चाहता है ,
आंगन में तुलसी लगाना
जैसे सहर चाहता है,
दोबारा लौट आना ।

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23 JUL 2020 AT 17:42

कहानी खत्म होती है ,
किरदार याद रहते हैं।
उन्हीं यादों के किस्सों में
कहीं "आजाद" रहते हैं।

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15 JUL 2020 AT 0:34

ज़ुबां होकर भी बेजुबां होना ,
कितना मुश्किल है परिंदा होना ।
पल में धूप पल में अंधेरा होना ,
आसां नहीं है आसमां होना ।
गुनाहगार तुमने मान लिया ही है तो
अब कैसी सफाई कैसा शर्मिंदा होना
एक बार चिट्ठी छोड़ आया कबूतर ,
ज़रूरी नहीं है ये हर मर्तबा होना।
पूरी रात ये जो अंधेरा रहा है मेरी जां
तो अब वाजिब है सवेरा होना ।

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13 JUL 2020 AT 0:31

कुछ तुम भी कहो तो इकरार समझूं इसे ,
एक मेरे अकेले के बतलाने से क्या होगा ?
सूखा सा दरिया हूं रेत सा तपता हुआ,
बारिश की एक लहर आने से क्या होगा ?
एक लहर नहीं टिकेगा आशियाना मेरा ,
समुंदर किनारे रेत के घर बनाने से क्या होगा ?
सैंकड़ों फूल आते हैं हर रोज एक पौधे पर ,
एक मेरे टूट कर गिर जाने से क्या होगा ?
सब साथ दें मेरा तो चांद पर कुछ रौब बने,
अकेला जुगनू हूं मेरे जल जाने से क्या होगा ?

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12 JUL 2020 AT 1:36

ज़िन्दगी चलाने के लिए,
खुद चलना ज़रूरी है ।
मुश्किल रास्तों से ,
निकलना ज़रूरी है ।
ज़िन्दगी का काम है ,
गिरती संभलती है ।
संभलकर गिरना ,
गिरकर संभलना ज़रूरी है।

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11 JUL 2020 AT 2:34

कर्म को अंग्रेजी भाषा में,
कर्म ही कहा जाता है ।
ये जीत है साहित्य की,
ये जीत है हिंदी की,
ये जीत है भारतीयता की
ये जीत है लेखक की ।

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11 JUL 2020 AT 1:09

इक परिंदे से मैं उसका घर मांगता हूं ,
रास्तों से उनका सफर मांगता हूं ।
जनता हूं! नहीं देगा वो पता अपना ,
पर जिधर देखता हूं उधर मांगता हूं ।

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